भोपाल, 2 जनवरी (आईएएनएस)। देश और दुनिया में भले ही विज्ञान और चिकित्सा जगत में नई खोज हो रही हो, मगर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के ग्रामीण इलाकों में अब भी अंधविश्वास का बोलबाला है। यही कारण है कि बीमार बच्चों को अस्पताल ले जाने की बजाय झाड़-फूंक का सहारा लिया जा रहा है। इसके चलते बच्चों की जान तक जा रही है।
शहडोल संभाग में जनजातीय वर्ग की संख्या ज्यादा है। यहां लोग बच्चों के उपचार के लिए अस्पताल जाने की बजाय ओझा पर ज्यादा भरोसा करते हैं। ठंड के मौसम में बच्चों को सबसे ज्यादा निमोनिया की शिकायत होती है और लोग झाड़-फूंक का सहारा लेते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ बीते रोज अनूपपुर जिले के ताराडाड गांव में, जहां तीन माह की बच्ची को निमोनिया हुआ तो उसके माता-पिता ओझा के पास ले गए, जहां ओझा ने बच्ची को गर्म सरिया से 51 बार दागा। गंभीर स्थिति में बच्ची को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई।
इसी तरह का मामला शहडोल जिले के पटासी गांव से आया था, जहां 17 दिसंबर को तीन माह की बच्ची को कई बार दागा गया था, हालत बिगड़ने पर उसे अस्पताल ले जाया गया और उसकी 19 दिसंबर को मौत हो गई। उमरिया जिले के बकेली में भी 28 दिसंबर को दागने से लगभग डेढ़ माह की बच्ची की मौत हुई थी।
स्थानीय जानकारों का कहना है कि आदिवासी अंचल में बच्चों को निमोनिया होने पर गर्म लोहे के औजारों से दागने की परंपरा है और यही कारण है कि पीड़ित बच्चों के परिजन अस्पताल जाने की बजाय ओझाओं के पास जाते हैं। ऐसा करने पर बच्चों की सेहत सुधरने की बजाय और बिगड़ जाती है। कई बच्चे तो काल के गाल तक में समा रहे हैं।
शहडोल जिले की कलेक्टर वंदना वैद्य ने महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी को निर्देशित करते हुए कहा कि दागना कुप्रथा के प्रति जागरूकता अभियान चलाया जाए और गांव-गांव भ्रमण कर नवजात शिशुओं की निमोनिया सहित अन्य स्वास्थ्य परीक्षण कराई जाए।