देहरादून, 19 दिसंबर (आईएएनएस)। उत्तराखंड एक पहाड़ी (Uttarakhand a hill) राज्य है, जहां 70 प्रतिशत भाग पहाड़, जंगल, नदियों और हिमखंडों का है। दूसरी तरफ मात्र 30 प्रतिशत हिस्सा ही मैदानी क्षेत्रों में आता है। ऐसे में जब राज्य का एक बड़ा हिस्सा जंगल (Part forest) में आता है तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। साथ ही जंगल में मिलने वाली जड़ी-बूटियों और वन्य जीवों की भी सुरक्षा काफी महत्वपूर्ण होती है।
उत्तराखंड वन विभाग की वर्किंग प्लान बैठक में तराई पूर्वी और पश्चिमी वन प्रभाग को लेकर अहम फैसले लिए गए है। जिसमें वनों के संरक्षण के लिए सीमांकन को सैटेलाइट यानी जीपीएस के माध्यम से अंकित किया जाएगा। बाघों के संरक्षण के लिए भी विशेष कार्य योजना बनेगी। बाघों की बढ़ती संख्या के लिए जरूरी कार्य योजना पर फोकस करते हुए प्रभाग के अधिकारियों को आदेश दिए गए हैं।
प्रमुख वन संरक्षक हॉफ की अध्यक्षता में हुई बैठक में अधिकारियों ने पिछले सालों में हुए कार्यों की समीक्षा की और आगामी कार्य योजना के बारे में चर्चा की। बैठक में कई बिंदुओं पर चर्चा की गई, जिसमें वन संरक्षण के साथ-साथ वन्य जीव संरक्षण को बेहतर किया जा सके। वाइल्डलाइफ टूरिज्म को भी बढ़ावा देने की नीतियों को आगे बढ़ने के लिए जरूरी उपायों पर काम करने के लिए कहा गया।
बैठक में तराई पूर्वी और तराई पश्चिमी वन क्षेत्र में वनों के संरक्षण के लिए सीमांकन को तकनीकी माध्यम से किया जाएगा। प्रमुख वन संरक्षक ने अधिकारियों को इस दिशा में काम करने के लिए कहा। मानव वन्य जीव संघर्ष के खतरों को भी रोकने के लिए प्लान तैयार करने के लिए कहा गया।