गुजरात हाईकोर्ट ने पुलिसकर्मियों को 14 दिन की जेल की सजा सुनाई

By : hashtagu, Last Updated : October 19, 2023 | 5:32 pm

अहमदाबाद, 19 अक्टूबर (आईएएनएस)। गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने गुरुवार को चार पुलिस अधिकारियों को 14 दिन की जेल (Four police officers jailed for 14 days) की सजा सुनाई और प्रत्येक पर 2,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। यह पुलिसकर्मी एक साल पहले खेड़ा में कई मुस्लिम पुरुषों की पिटाई में शामिल थे।हालांकि, बचाव पक्ष की याचिका पर कार्रवाई करते हुए अदालत ने दोषियों को अपील करने का समय देते हुए सजा के क्रियान्वयन को तीन महीने के लिए निलंबित कर दिया।

विस्तृत जांच का निर्देश देने पर, हाईकोर्ट ने ए.वी. परमार, डी.बी. कुमावत, लक्ष्मणसिंह कनकसिंह डाभी और राजूभाई डाभी के रूप में पहचाने गए चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू की।

अदालत के अंतिम फैसले में यह आवश्यक है कि दोषी पुलिस अधिकारी आदेश की प्राप्ति के बाद दस दिन की अवधि के भीतर गुजरात हाईकोर्ट के न्यायिक रजिस्ट्रार को रिपोर्ट करें। जैसा कि बताया गया है, अपील की अनुमति देने के लिए सज़ा को फिलहाल तीन महीने की अवधि के लिए रोक दिया गया है।

न्यायमूर्ति सुपेहिया ने कानून प्रवर्तन अधिकारियों को कैद करने में अदालत की अनिच्छा को ध्यान में रखते हुए, अदालत की निराशा व्यक्त की। न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और न्यायमूर्ति गीता गोपी की खंडपीठ ने इस कृत्य को अमानवीय और मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन बताया। मदर टेरेसा के शब्दों पर आधारित, पीठ ने कहा कि मानवाधिकार कोई सरकारी विशेषाधिकार नहीं बल्कि एक जन्मजात मानवीय अधिकार है।

उन्होंने आगे कहा कि पुलिस अधिकारियों ने शिकायतकर्ताओं के मानवाधिकारों की घोर उपेक्षा की और ऐसा व्यवहार किया मानो उन्हें ऐसा करने का विशेषाधिकार प्राप्त हो।

उन्होंने आगे आगाह किया कि जिन लोगों को कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, उन्हें नागरिक स्वतंत्रता से समझौता नहीं करना चाहिए। यह मामला 3 अक्टूबर, 2022 की एक घटना से जुड़ा है, जहां एक बड़ी भीड़ ने कथित तौर पर उंधेला गांव में एक धार्मिक कार्यक्रम को बाधित किया था।

इसके बाद, ऐसे वीडियो सामने आए जिनमें पुलिस अधिकारियों को सार्वजनिक रूप से कई लोगों की पिटाई करते हुए दिखाया गया, जिसकी व्यापक निंदा हुई। अत्यधिक पुलिस बल और अवैध हिरासत का आरोप लगाते हुए पांच पीड़ितों ने गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया गया, जो गिरफ्तारी और हिरासत के दौरान पुलिस आचरण के लिए दिशानिर्देशों की रूपरेखा तैयार करता है। उन्होंने आगे अपने अधिकारों के उल्लंघन के लिए मुआवजे की मांग की।

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