बिलकिस के दोषियों की माफी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘डरने की कोई बात नहीं’
By : hashtagu, Last Updated : April 18, 2023 | 11:52 pm
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि अदालत यह देखने में रुचि रखती है कि कानूनी रूप से किन शक्तियों का प्रयोग किया गया था और अदालत निष्कर्ष निकालने के लिए स्वतंत्र है।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कहा कि फाइलें उनके पास मंगलवार को ही आईं। उन्होंने कहा, “मुझे फाइल देखने दीजिए और मैं इस मामले पर अगले हफ्ते सुनवाई करूंगा।”
उन्होंने कहा कि अदालत यह देखने में रुचि रखती है कि कानूनी रूप से किन शक्तियों का प्रयोग किया गया था और यदि आप हमें कारण नहीं बताते हैं, तो अदालत निष्कर्ष निकालने के लिए स्वतंत्र है।
इस पर, न्यायमूर्ति जोसेफ ने राजू से कहा : “आपने पूरी तरह से कानूनी काम किया है, डरने की कोई बात नहीं है .. सामान्य मामलों में छूट का अनुदान न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं होगा।”
उन्होंने कहा, “आज यह महिला (बिलकिस) है। कल, यह आप या मैं हो सकते हैं। फिर आप कौन से मानक लागू करेंगे .. वस्तुनिष्ठ मानक निर्धारित हैं। इसे दिखाने में क्या समस्या है (11 दोषियों की छूट से जुड़ी फाइलें) आज? हमने तो पहले ही कहा था, इस मामले को दूसरे दिन लाना। आपने अवमानना की, फाइलें पेश नहीं कीं, तो आखिर मुश्किल क्या है?”
राजू ने कहा : मेरे निर्देश हैं, हम विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं और समीक्षा के लिए कह रहे हैं।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने तब कहा : यदि आप हमें फाइलें दिखाते हैं तो आप बेहतर स्थिति में होंगे। राजू ने जोर देकर कहा कि उनके निर्देश अलग हैं और इसलिए उन्हें उनका पालन करना होगा।
पीठ ने कहा कि उसने सरकार को समीक्षा रिपोर्ट दाखिल करने से नहीं रोका है और पूछा है कि फाइलों के अभाव में क्या वकील बहस कर पाएंगे? राजू ने कहा : शुरुआत में मैंने कहा कि दलीलें पूरी नहीं हुई हैं और समीक्षा याचिका दायर करने के लिए कुछ समय मांगा।
जस्टिस नागरत्ना ने पूछा कि फाइलों के अभाव में सरकार के वकील की दलीलों का आधार क्या होगा।
बिलकिस बानो का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा कि गुजरात राज्य ने पहले ही जवाबी हलफनामे में अदालत में अधिकांश दस्तावेज दाखिल कर दिए हैं।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने तब राजू से कहा : हम समीक्षा याचिका दायर करने में आपके रास्ते में खड़े होना नहीं चाहते।
पीठ ने कहा, सवाल यह है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया, कौन सी सामग्री उसके फैसले का आधार बनी।
सुनवाई के दौरान, पीठ ने मामले के रिकॉर्ड की भी जांच की और कहा कि सजा काटने के दौरान दोषियों को 3 साल की पैरोल दी गई थी। यह नोट किया गया कि उनमें से प्रत्येक को 1,000 दिनों से अधिक की पैरोल दी गई थी। एक दोषी को 1,500 दिन की पैरोल मिली, और पूछा : आप किस नीति का पालन कर रहे हैं?
मामले में एक विस्तृत सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 2 मई को होनी तय की, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि विचाराधीन अपराध ‘भयानक’ था और गुजरात सरकार के लिए यह अनिवार्य है कि वह 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई की अनुमति देने के लिए दिमाग का इस्तेमाल करे।
–आईएएनएस