कई रोचक किस्सों से भरी है दास्तान-ए-हेमलता, प्रामाणिक जीवनी का दिल्ली में लोकार्पण
By : hashtagu, Last Updated : November 25, 2024 | 10:39 am
दिल्ली । मशहूर पार्श्वगायिका हेमलता (Famous playback singer Hemlata) की जीवनी “दास्तान-ए-हेमलता” का लोकार्पण (Inauguration) 23 नवंबर, 2024 शनिवार दिल्ली में ‘साहित्य आजतक’ के मंच से हुआ। इस जीवनी को जाने-माने पत्रकार और जीवनीकार डॉ. अरविंद यादव ने लिखा है। यह हेमलता की प्रामाणिक जीवनी है। इसमें उनकी ज़िंदगी से जुड़े कई रोचक किस्से हैं। कई ऐसी घटनाओं का वर्णन है, जिनके बारे में हेमलता के क़रीबी लोग भी नहीं जानते हैं। लेखक ने हेमलता के पिता पंडित जयचंद भट्ट के बारे में भी कई रोचक जानकारियाँ इस किताब के ज़रिए साहित्य-प्रेमियों और संगीत-प्रेमियों के सामने लाई हैं।
महज़ तेरह साल की उम्र में अपना पहला फ़िल्मी गीत रिकॉर्ड करने वाली हेमलता ने अपने जीवन में 38 भाषाओं में पाँच हज़ार से ज़्यादा गीत गाए। भारत की धरती पर जिस किसी बोली और भाषा में फ़िल्म बनी, हेमलता ने उस भाषा और बोली में गीत गाए। हिंदी, मराठी, कन्नड़, मलयालम,तेलुगु, तमिल, ओड़िया, बांग्ला, असमिया, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, संस्कृत, प्राकृत जैसी भाषाओं के अलावा मारवाड़ी, ब्रज, भोजपुरी, अवधी, बुंदेलखंडी, मैथिली, डोगरी, कश्मीरी, कोंकणी, हरियाणवी, नेपाली, गढ़वाली, कुमाऊनी, चंबयाली, बिलासपुरी भाषाओं-बोलियों में भी गीत गाए और ये गीत लोकप्रिय भी हुए। इनके अलावा हेमलता ने इंग्लिश, फ्रान्सीसी, इतालवी, डच, ज़ुलु, मॉरीशस क्रियोल, सराइकी, मुलतानी जैसी विदेशी भाषाओं में भी गीत गाए। हर रूप-रंग के गीत गाए। प्रेम-गीत, विरह-गीत गाए। भक्ति-गीत, लोक-गीत गाए। ग़ज़लें गाईं। यह तथ्य उनकी अद्वितीय प्रतिभा और वाणी में विविधता लाने की अद्भुत कला का परिचायक है।
हेमलता को बचपन में ‘बेबी लता’ कहा गया और किशोरावस्था में ‘दूसरी लता’। कुछ लोग तो इन्हें ‘सस्ती लता’ कहने लगे थे। जिन फ़िल्मकारों को लता मंगेशकर की फ़ीस भारी-भरकम लगती थी और जिन संगीतकारों को लता मंगेशकर की ‘डेट’ नहीं मिलती थी, वे हेमलता से गीत गवाते थे। इन फ़िल्मकारों और संगीतकारों के लिए हेमलता ही ‘लता’ थीं, उनकी अपनी लता।
नौशाद ने कहा था, “हेमलता में लता मंगेशकर की वॉइस क्वालिटी और नूरजहाँ की इनोसेंस है।” रोशन ने कहा था, “मुझे मेरी लता मिल गई।“ सचिन देव बर्मन ने बेटे राहुल देव बर्मन से कहा था, “हेमलता को पहले तुम नहीं, मैं गवाऊँगा।“ हेमलता उन गिनी-चुनी कलाकारों में हैं, जिनमें लता मंगेशकर के वर्चस्व को चुनौती देने का दम नज़र आया।
- सत्तर और अस्सी के दशक में तेलुगु, तमिल, कन्नड़ और मलयालम की जितनी भी हिट फ़िल्में हिंदी में डब हुईं, उनमें सबसे ज़्यादा ‘डब गीत’ गाने का कीर्तिमान हेमलता के नाम है।
घर-घर चर्चा का विषय बने दूरदर्शन के धारावाहिक ‘रामायण’ के हर एपिसोड में हेमलता की मधुर वाणी सुनाई देती है। ‘रामायण’ के कई गीत, दोहे, चौपाइयाँ हेमलता ने गाईं। लेकिन एक व्यक्ति की ईर्ष्या का दुष्परिणाम यह रहा कि शुरुआती दिनों में उन्हें वह श्रेय, सम्मान और लोकप्रियता नहीं मिली, जिसकी वे हक़दार थीं। लेकिन सच छुपाया न जा सका। दुनिया जान गई कि रामायण की कई लोकप्रिय रचनाएँ हेमलता ने गाई हैं। हेमलता के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड भी है। पूरे नौ महीने के गर्भ के साथ गीत रिकॉर्ड करने वाली वे पहली गायिका हैं। ‘नदिया के पार’ का लोकप्रिय गीत ‘कौन दिशा में लेके चला रे बटुहिया’ गीत हेमलता ने उस समय गाया, जब वे गर्भवती थीं और डेलीवेरी की तारीख़ निकल चुकी थी।
- हेमलता की जीवनी के लेखक अरविंद यादव मूलतः पत्रकार हैं
मशहूर वैज्ञानिक भारतरत्न प्रोफेसर सीएनआर राव, भारत की पहली महिला कार्डियोलॉजिस्ट ‘पद्मविभूषण’ डॉ. पद्मावती, जानी-जानी सामाजिक कार्यकर्ता ‘पद्मश्री’ फूलबासन यादव, मशहूर उद्यमी और उद्योगपति सरदार जोध सिंह, जाने-माने उद्यमी, समाज-सेवी और चिकित्सक निम्मगड्डा उपेंद्रनाथ और मशहूर शल्यचिकित्सक डॉ. पिगिलम श्याम प्रसाद की जीवनियों के अलावा इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
1996 में ‘हिंदी मिलाप’ अख़बार से अपना पत्रकारिता-जीवन शुरू करने वाले अरविंद ने आगे ‘आजतक’ और फिर चैनल 7/ आईबीएन 7 में बतौर संवाददाता काम किया। 2008 में वे ‘साक्षी’ तेलुगु न्यूज़ चैनल के कार्यकारी संपादक बने। 2012 से 2015 तक इन्होंने ‘टीवी 9’ तेलुगु न्यूज़ चैनल के संपादक के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। 2015 में वे ‘योर स्टोरी’ डिजिटल मीडिया संस्था से जुड़े और बारह भारतीय भाषाओं में इसके वेब-संस्करण शुरू करवाने में महती भूमिका निभायी। डॉ. अरविंद ने ‘योर स्टोरी’ में प्रबंध संपादक (भारतीय भाषा) के रूप में काम किया। अरविंद यादव ने 2019 से जून, 2024 तक आंध्रप्रदेश सरकार के विशेष कार्य अधिकारी (मीडिया) के रूप में काम किया।
लेखनी के ज़रिये असत्य, अन्याय, भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने की वजह से मशहूर हुए अरविंद यादव का जन्म शहर-ए-हैदराबाद में हुआ। स्कूल-कॉलेज की सारी पढ़ाई इसी ऐतिहासिक शहर में हुई। अरविंद यादव ने अंग्रेज़ी और हिंदी में एम. ए. की उपाधियाँ उस्मानिया विश्वविद्यालय से प्राप्त कीं। इन्होंने विज्ञान, मनोविज्ञान और क़ानून का भी अध्ययन किया। वे दक्षिण भारत की राजनीति और संस्कृति के बड़े जानकार हैं। ख़बरों और कहानियों की खोज में कई गाँवों और शहरों का दौरा कर चुके हैं। यात्राओं का दौर थमने वाला भी नहीं है।
समाज में दबे-कुचले लोगों के लिए संघर्ष ने इन्हें पत्रकारों की फ़ौज में अलग पहचान दिलायी है। पिछले कुछ सालों से इनका ज़्यादा ध्यान ऐसे लोगों के बारे में कहानियाँ/लेख लिखने पर है, जो देश-समाज में सकारात्मक क्रांति लाने में जुटे हैं। कामयाब लोगों के जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं को जानना और उन्हें लोगों के सामने लाने की कोशिश करना अब इनकी पहली पसंद है। वे देश में हो रहे अच्छे कार्यों को जन-जन तक पहुँचाने के पक्षधर हैं।
एक पत्रकार के रूप में स्थापित, चर्चित और प्रसिद्ध हो चुके अरविंद अब एक कहानीकार और जीवनी-लेखक के रूप में भी ख्याति पा रहे हैं।