पहाड़ों से लेकर समुद्र की गहराई तक दिख रहा ग्लोबल वार्मिंग, भारत पर क्या हो रहा असर?

By : dineshakula, Last Updated : August 26, 2023 | 8:30 am

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार, पहाड़ की चोटियों से लेकर समुद्र की गहराई तक पृथ्वी के गर्म होने के असर साफ नजर आ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और उसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग की रफ्तार थम नहीं रही है। अंटार्कटिक समुद्री बर्फ रिकॉर्ड स्तर पर, अपनी सबसे निचली सीमा तक गिर गई और कुछ यूरोपीय ग्लेशियरों का पिघलना तो गिनती से भी बाहर हो गया। एक हालिया रिपोर्ट में यह सामने आया है कि 2022 के अंत में ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगभग 10,000 एंपेरर पेंगुइन के युवा चूजों की मृत्यु हो गई। क्योंकि वह जिस समुद्री बर्फ पर थे वह पिघल कर टूट गई। इन चूजों ने कम उम्र की वजह से अभी तक अंटार्कटिक महासागर में तैरने के लिए आवश्यक जलरोधी पंख विकसित नहीं किए थे। इसलिए बर्फ के पिघलने पर वह डूब गये।

ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन अगर बिना रोक टोक इसी रफ्तरा से बढ़ता गया तो बढ़ते तापमान की वजह से पिघल रहे अंटार्कटिक बर्फ के चलते एंपरर पेंगुइन की 98 फीसदी आबादी इक्कीसवीं सदी तक गायब हो सकती है। जैसे-जैसे ग्रीनहाउस गैस एमिशन में वृद्धि हो रही है, वैसे-वैसे जलवायु में परिवर्तन गति पकड़ रहा है और दुनिया भर की आबादी चरम मौसम और जलवायु घटनाओं से गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है।

करोड़ों लोग हो रहे प्रभावित

उदाहरण के लिए, 2022 में पूर्वी अफ्रीका में लगातार सूखा, पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ बारिश और चीन और यूरोप में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी ने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया। इसने खाद्य असुरक्षा और बड़े पैमाने पर पलायन को बढ़ावा दिया। इससे होने वाला नुकसान अरबों डॉलर में है। बीते सवा लाख वर्षों में इस साल 2023 में जुलाई का महीना सबसे अधिक गर्म रहा। ऐसे में दुनिया भर में समुद्र की सतह का तापमान भी सबसे ज्यादा गर्म रहा।

जलवायु परिवर्तन से उपजी ग्लोबल वार्मिंग के चलते 13 दिन और 3 घंटे के विस्तारित जीवनकाल के साथ, बिपरजॉय उत्तरी हिंद महासागर पर दूसरा सबसे लंबी अवधि का चक्रवात बन गया। 7.7 किमी प्रति घंटे की औसत गति से इसकी धीमी गति ने इसे अधिक नमी से भर दिया और भूमि के साथ इसकी संपर्क को लंबे समय तक बढ़ाया, जिससे इसकी तीव्रता और भूस्खलन पर तबाही में योगदान हुआ। भारत में मानसून पर भी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की अमिट छाप दिखायी दी।

भारत पर क्या हो रहा असर

पश्चिमी हिमालय और पड़ोसी उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाके 8-13 जुलाई तक अत्यधिक भारी वर्षा की घटनाओं से प्रभावित हुए। हिमाचल प्रदेश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा, एक सप्ताह के भीतर 50 से अधिक भूस्खलन हुए। 18-28 जुलाई तक दस दिनों की मूसलाधार बारिश ने पश्चिमी तट पर कहर बरपाया, जिसका प्रभाव गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक जैसे राज्यों पर पड़ा। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को भी 26-28 जुलाई तक बाढ़ का सामना करना पड़ा।

जैसे-जैसे भारत बदलती जलवायु की जटिलताओं से जूझ रहा है, चरम मौसम की घटनाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव स्पष्ट होते जा रहे हैं। फसल की क्षति के कारण चावल पर प्रतिबंध से लेकर टमाटर की आसमान छूती कीमतों तक, इन मौसम-प्रेरित व्यवधानों का प्रभाव पूरे देश में है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन और तीव्र होगा, वैसे-वैसे ग्लोबल वार्मिंग भी और बढ़ती जायेगी। इसके चलते वैज्ञानिकों का अनुमान है कि बाढ़, लू और चक्रवात जैसी चरम घटनाएं अधिक बार और गंभीर हो जाएंगी।