जानें परवेज मुशर्रफ के सियासी सफर पर कैसे लगा ग्रहण, राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने की कहानी?
By : hashtagu, Last Updated : August 18, 2024 | 9:43 am
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने समान रूप से निंदा और प्रशंसा हासिल की। 1947 में विभाजन की लकीर खींची गई तो मुशर्रफ का परिवार पाकिस्तान चला गया। कराची में बस गया। पिता राजनयिक थे, जिसके कारण उन्हें अपना बचपन तुर्की में बिताना पड़ा क्योंकि उनके पिता अंकारा में काम करते थे।
एक सैन्य अधिकारी के तौर पर उन्होंने 18 साल की उम्र में पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में प्रवेश लिया, जहां से उन्होंने 1964 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। मुशर्रफ को बतौर सैन्य अधिकारी 1964 में पाकिस्तानी सेना में एक आर्टिलरी रेजिमेंट में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया। 1965 के भारत पाक युद्ध में युवा परवेज ने लड़ाई लड़ी। परवेज 1971 के युद्ध का भी हिस्सा रहे, जिसने दुनिया के मानचित्र में एक नए देश का उदय देखा।
धीरे-धीरे मुशर्रफ स्टार अधिकारी के रूप पाकिस्तानी सेना में अपना दबदबा बनाते चले गए। सेना में कमांडो के विशिष्ट विशेष सेवा समूह के सदस्य बन गए।
आगे चलकर उन्हें 1998 में सेना प्रमुख के रूप में चुना था। शातिर परवेज को अपनी मंजिल पता थी। पाकिस्तान का पुराना इतिहास दोहराया गया और तख्ता पलट कर रख दी। नवाज शरीफ की सरकार को गिरा दिया। 2008 तक राष्ट्रपति की कुर्सी पर कब्जा जमाए रखा।
2007 में मुशर्रफ ने एक बड़ी गलती की, जिसका उन्हें कीमत भी चुकानी पड़ी। दरअसल मार्च 2007 में मुख्य न्यायाधीश को पद से हटा देना उनकी सबसे बड़ी गलती थी। इसके बाद उनकी स्थिति डांवाडोल हो गई और सत्ता से दूर होने के संकेत मिलने लगे। मुशर्रफ ने मुख्य न्यायाधीश इफ़्तिख़ार चौधरी को हटाने की कोशिश इसलिए की क्योंकि मुशर्रफ को डर था कि पाकिस्तान का सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति के रूप में उनके निर्वाचन में कानूनी बाधाएं खड़ा कर देगा। न्यायपालिका के खिलाफ मुशर्रफ के इस कदम ने उनकी छवि को खासा नुकसान पहुंचाया।
वकील और सामान्य नागरिक न्यायपालिका की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए। उसके बाद नवंबर में मुशर्रफ ने आपातकाल की घोषणा कर दी। इस दौरान हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया। जिसने पाकिस्तान में तख्तापलट की पृष्ठभूमि तैयार की।
2007 में राष्ट्रपति बनने के लिए सेना प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया। फरवरी 2008 में हुए आम चुनावों में भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी विजयी हुई। महाभियोग के खतरे का सामना करते हुए मुशर्रफ ने बाद में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर दुबई चले गए। पाकिस्तान के 61 साल के इतिहास में यह पहली बार होगा कि किसी राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाया गया हो।
उन्होंने अपने निर्वासन के दौरान का समय लंदन और दुबई में बिताया। इस दौरान मुशर्रफ ने कहा कि वह महाभियोग को लेकर चिंतित नहीं हैं, बल्कि टकराव से बचने के लिए पद छोड़ रहे हैं, जिससे देश और राष्ट्रपति पद को नुकसान हो सकता है। तमाम मुकाम को हासिल करते हुए उनका जीवन अपमान और गुमनामी के अंधेरे में समाप्त हो गया।