उपचुनाव की जीत, BJP-कांग्रेस के लिए मिशन 2023 में कितना कारगर!

भानुप्रतापपुर विधानसभा का उप चुनाव अब कांग्रेस और बीजेपी के लिए सम्मान की लड़ाई हो गई। क्योंकि अगले साल विधानसभा चुनाव का मिशन है। क्योंकि इसके नतीजे को लेकर दोनों पार्टियां 2023 के चुनावी समर में कूदना चाहती। ताकि इस बात को दमदारी से अपने-अपने वोटरों के बीच रख सकें, की किसकी लहर प्रदेश में चल रही है।

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  • Updated On - November 30, 2022 / 03:29 PM IST

रायपुर। भानुप्रतापपुर विधानसभा का उप चुनाव अब कांग्रेस और बीजेपी के लिए सम्मान की लड़ाई हो गई। क्योंकि अगले साल विधानसभा चुनाव का मिशन है। क्योंकि इसके नतीजे को लेकर दोनों पार्टियां 2023 के चुनावी समर में कूदना चाहती। ताकि इस बात को दमदारी से अपने-अपने वोटरों के बीच रख सकें, की किसकी लहर प्रदेश में चल रही है। जबकि इस उपचुनाव की जीत से ये कह पाना मुश्किल होगा। जनता का मन वास्तविक रूप से किसकी ओर है। नजीर के तौर पर 2018 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को 90 में 70 सीट मिली थी। लेकिन इसके कुछ ही महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में 11 सीट में कांग्रेस को मात्र 2 सीटें ही मिल पाईं थीं। वहीं भाजपा को 9 सीटों पर कामयाबी मिली।
यानी वोटरों का मिजाज कब बदल जाए, उसे भांप पाना नामुमकिन है। बहरहाल, उस वक्त मोदी लहर का नतीजा था, की यहां राज्य में जिस विधानसभा के चुनाव में जनता ने कांग्रेस को प्रचंड बहुमत दिया, उसे केंद्र में मोदी की सरकार बनवाने में रुचि दिखी थी।
इस पैमाने के आधार पर अगर बीजेपी मुगालते में रहती है तो पिछली बार की तरह चारों ओर चित्त हो सकती है।
फिलहाल, अब 4 साल कांग्रेस राज कर चुकी है। लेकिन सरकार की छवि जहां धान के समर्थन मूल्य देने से किसानों में बेहतर है। लेकिन कुछ विवादित कामकाज से कुछ साइड इफेक्ट भी पड़ा है। इसके अलावा यहां आम जन में चर्चा थी, की 2.5 साल भूपेश और 2.5 टीएस सिंहदेव के बारी बारी से मुख्यमंत्री बनना है। इसको लेकर भी जो राजनीति दिल्ली तक आपस में शक्ति प्रदर्शन का चला, उससे सभी परिचित हैं। इसके बाद फिर कांग्रेस के ही मंत्री टीएस बाबा ने पीएम आवास गरीब जनता को नहीं मिलने के सवाल पर सार्वजनिक रूप से पंचायत विगाग के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। जिसे बीजेपी ने मुद्दा बनाया था। इधर बीच एक बार फिर विधायक बृहस्पत सिंह ने अपने ही सरकार के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के विभागीय अधिकारियों पर खाली पद पर भर्ती नहीं करने और अफसरों की कार्यप्रणाली पर सीएम को पत्र लिखकर असंतोष व्यक्त किया है। जबकि वर्तमान में भानुप्रतापपुर में जहां उपचुनाव है। वहीं अगले साल चुनावी अग्नि परीक्षा है। इधर बीजेपी भी कांग्रेस में जो कुछ भी हो रहा है। उसका फायदा लेने से चूकने वाली नहीं। कहने का अर्थ है की जनता का मूड किस पार्टी की ओर चला जाए। यह कहना मुश्किल है। लेकिन इन सब राजनीतिक झंझावतों के बीच मुख्यमंत्री भूपेश की छवि एक नायक के रूप में अब जनता के बीच स्थापित हो चुकी है। इनके सरल स्वभाव और देसी अंदाज ग्रामीण अंचलों में लोकप्रिय है। फिर भी कांग्रेस और बीजेपी के लिए मिशन 2023 की राहें आसान नहीं होगी। कुछ मुद्दे के लिए शब्द मौन हैं, आज सोशल मीडिया के क्रांति में चल रहे घटना क्रम से सभी वाकिफ हैं। चाहे ग्रामीण अंचल हो या शहरी बच्चे से लेकर बुजुर्गों के हाथों में स्मार्ट मोबाइल है। वैसे भी राजनीति में न कोई दुश्मन है और न दोस्त। सभी पार्टियां एक सिक्के के दो पहलू।