मध्‍य प्रदेश में भाजपा हिंदुत्व के एजेंडे और माइक्रो मैनेजमेंट के सहारे कमलनाथ को छिंदवाड़ा में ही घेरने की कर रही कोशिश

कमलनाथ 2019 में लोकसभा चुनाव इसलिए नहीं लड़ पाए थे, क्योंकि वह उस समय राज्य के मुख्यमंत्री थे और छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के छिंदवाड़ा विधान सभा से ही विधायक थे।

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  • Publish Date - November 7, 2023 / 08:12 AM IST

नई दिल्ली (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश का छिंदवाड़ा (Kamal Nath) लोकसभा सीट कमलनाथ का गढ़ माना जाता रहा है। कमलनाथ यहां से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं। यहां तक कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में चली भाजपा की आंधी के बीच कांग्रेस जिस एकमात्र लोकसभा सीट को बचा पाई थी, वह छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र ही था, जहां से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ लोकसभा का चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे।

कमलनाथ 2019 में लोकसभा चुनाव इसलिए नहीं लड़ पाए थे, क्योंकि वह उस समय राज्य के मुख्यमंत्री थे और छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के छिंदवाड़ा विधान सभा से ही विधायक थे। कमलनाथ एक बार फिर से छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से ही विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं और कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी हैं, यानी अगर कांग्रेस जीतती है तो राज्य के अगले मुख्यमंत्री कमलनाथ ही होंगे।

कमलनाथ और कांग्रेस की तैयारी के बीच भाजपा ने विपक्ष के बड़े नेताओं को घेरने और पार्टी के लिए कमजोर माने जाने वाली सीटों को जीतने के मिशन के तहत कमलनाथ को उनके ही गढ़ छिंदवाड़ा में घेरने की कोशिश शुरू कर दी है।

दरअसल, भाजपा एक साथ दो मंसूबों को लेकर कमलनाथ के गढ़ में काम कर रही है। भाजपा का पहला मंसूबा तो यही है कि विधानसभा चुनाव में कमलनाथ को छिंदवाड़ा में कड़ी टक्कर देकर उन्हें छिंदवाड़ा तक ही सीमित रखने की कोशिश की जाए, ताकि वह पूरे प्रदेश में बहुत ज्यादा ध्यान ना दे पाएं और भाजपा का दूसरा मकसद यह है कि विधानसभा चुनाव में बतौर विधायक भले ही कमलनाथ चुनाव जीत जाएंं, लेकिन पार्टी इस इलाके की अन्य विधानसभा सीटों पर इतनी तेजी से अपना जनाधार बढ़ाए, ताकि लोकसभा चुनाव में वह छिंदवाड़ा संसदीय सीट जीत सके।

पार्टी का मकसद छिंदवाड़ा जीतना है, विधानसभा सीट नहीं तो लोकसभा ही सही और 2023 नहीं तो 2024 ही सही। इसके लिए भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हिंदुत्व की रणनीति और माइक्रो मैनेजमेंट के अपने असरदार नुस्खे को कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा में आजमा रहे हैं।

वैसे तो भाजपा ने पहले ही छिंदवाड़ा को अपने लिए कमजोर सीटों वाली सूची में शामिल कर इस पर बड़े नेताओं की ड्यूटी लगा रखी थी, लेकिन चुनाव को देखते हुए भाजपा अब बूथ स्तर तक जाकर माइक्रो मैनेजमेंट कर रही है।

इस क्षेत्र में रहने वाले बिहार और उत्तर प्रदेश मूल के वोटरों को साधने के लिए खासतौर से बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को तैनात किया गया है। सुशील मोदी के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप वर्मा भी छिंदवाड़ा में डेरा जमाए हुए हैं। लोध मतदाताओं को साधने के लिए केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल और ब्राह्मण वोटरों को साधने के लिए प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के कार्यक्रम लगातार आयोजित किए जा रहे हैं।

मोदी सरकार के आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री छिंदवाड़ा जा चुके हैं। माइक्रो मैनेजमेंट की समीक्षा के लिए अमित शाह स्वयं छिंदवाड़ा का दौरा कर चुके हैं। हाल के दिनों में कमलनाथ भाजपा की हिंदुत्व की पिच पर आकर ही बैटिंग कर रहे हैं। कमलनाथ अपनी छवि हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर बनाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। कमलनाथ की इस राजनीतिक चाल को भांपकर अमित शाह ने स्वयं उनके गढ़ में रैली कर इस छवि को तोड़ने का प्रयास किया।

अमित शाह ने हाल ही में छिंदवाड़ा में एक बड़ी रैली कर अगले साल 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम का जिक्र करते हुए कांग्रेस, कांग्रेस आलाकमान और कमलनाथ पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने किस तरह से हमेशा राम मंदिर निर्माण को अटकाने की कोशिश की।

शाह का मकसद बिल्कुल साफ था कि कमलनाथ के कोर वोटरों को यह समझाने का प्रयास किया जाए कि कमलनाथ सिर्फ चुनाव को देखते हुए हिंदुत्ववादी नेता की छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

आपको याद दिला दें कि छिंदवाड़ा लोकसीट से 1980 में कमलनाथ ने पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता था। उसके बाद से लेकर कमलनाथ 9 बार छिंदवाड़ा से सांसद चुने गए हैं और एक-एक बार उनकी पत्‍नी और बेटे ने यहां से लोकसभा का चुनाव जीता है। कमलनाथ को सिर्फ एक बार 1997 में भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन ना तो उससे पहले और ना ही उसके बाद कमलनाथ या उनके परिवार को यहां हार का मुंह देखना पड़ा। छिंदवाड़ा आज़ादी के बाद से ही कांग्रेस का गढ़ बना हुआ है और भाजपा इसी गढ़ में सेंध लगाने में जुट गई है।