रायपुर। वैकल्पिक विवाद निवारण (Alternative Dispute Resolution) का कोई विकल्प नहीं है और वर्तमान माहौल में मध्यस्थता का कोई विकल्प नहीं है,ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रवीन्द्र श्रीवास्तव ने लंदन में आयोजित थॉट लीडर्स फॉर डिस्प्यूट रिजोल्यूशन (Thought Leaders for Dispute Resolution) विषय पर आयोजित परिचर्चा में कहा कि भारत में न्यायिक व्यवस्था ध्वस्त सी हो गई है। मध्यस्थता का परिदृश्य भारत में उतना बेहतर नहीं है। न्याय तक पहुंच सच से अधिक एक मिथक है। मध्यस्थता के संबंध में हाल ही में हो रही बहुत सारी चर्चाएं और साथ ही विधायी हस्तक्षेप स्वागत योग्य पहल हैं। कम से कम कुछ एहसास तो हो रहा है।
श्रीवास्तव ने कहा कि उनका सुदीर्घ अनुभव कहता है कि मध्यस्थता में सफलता की संभावना और क्षमता बहुत अधिक होती है,जब यह जागरूकता से और इच्छा से स्वैच्छिक होती है; या तो पक्षकार इतने समझदार हैं कि वे यह महसूस कर सकें कि मुकदमेबाजी से कुछ नहीं होता है या जब उन्हें समाज या समुदाय में शुभचिंतकों से आगे बढ़कर महत्वपूर्ण रुप से विद्वान और संवेदनशील वकीलों द्वारा अच्छी तरह से सलाह दी जाती है । वर्तमान में चेक बाउंस मामलों, वैवाहिक मामलों, पारिवारिक संपत्ति विवाद, मोटर दुर्घटना दावा मामलों आदि में मध्यस्थता की संभावना तलाशी जाती है जो अदालतों में आने वाले मुकदमेबाजी के छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अनिवार्य मध्यस्थता एक अच्छा विचार है लेकिन इसे कारगर बनाने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है ,जिनमें आधारभूत संरचना के साथ ही योग्य, अनुभवी, प्रतिष्ठित और निष्पक्ष मध्यस्थ तैयार करने की जरुरत है। उन मामलों में,जिनमें सरकार एक पक्ष है और उन मामलों में भी जहां दोनो निजी पक्षों के बीच विवाद है धैर्य और दृढ़ता की बहुत आवश्यकता है।प्रथम अनुसूची के पृथक्करण पर फिर से विचार करने की जरुरत है।सरकारी सहायता की आवश्यकता के साथ ही बार का समर्थन सबसे अधिक जरुरी है। सरकारी और अर्ध सरकारी निकायों को मध्यस्थता में शामिल होना चाहिए क्योंकि मामलों की सबसे बड़ी संख्या योगदान करती है। परिचर्चा में सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति सुश्री हिमा कोहली ने मुख्य वक्ता के रुप में अपने विचार रखे।
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