रायपुर। बाधाएं आती हैं आएं, घिरें प्रलय की घोर घटाएं । पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं ।। निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की इन्हीं कविताओं को आत्मसात कर छत्तीसगढ़ की राजनीति में बीजेपी के त्रिदेव कहे जाने वाले मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय (Chief Minister Vishnudev Sai) और उपमुख्यमंत्री अरुण साव व विजय शर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए चुनावी युद्ध में सियासी महारथियों की भूमिका में नजर आ रहे हैं।
गौरतलब है प्रदेश से कांग्रेस की सत्ता को उखाड़ फेकने में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय व उपमुख्यमंत्री अरुण साव और विजय शर्मा की महत्वपूर्ण भूमिका थी ही। इसके साथ ही संगठन में भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अरुण साव नेतृत्व में कार्यकर्ताओं सहित भाजपा के अन्य पदाधिकारियों ने भी कांग्रेस की सत्ता के खिलाफ जमकर संघर्ष किया। सबको साथ लेकर कुछ ऐसे भी किरदार थे, जिन्होंने कांग्रेस को घेरने के लिए मुद्दे खोजे जिस भाजपा एकजूट होकर सदन से लेकर सड़क लड़ी और नतीजा आज प्रदेश की सत्ता में भाजपा की शानदार वापसी हुई। जहां मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आदिवासी समाज का विश्वास जीता और एक सशक्त चेहरे बनकर केंद्रीय नेतृत्व में उभरे। वहीं उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने भी गरीबों के पीएम आवास रोके जाने के विरोध में आंदोलन के अगुवा बने और पूरी पार्टी उनके साथ संघर्ष कर कांग्रेस की सत्ता पलटने की इबारत लिख डाली।
अपने हिंदुत्व राजनीतिक के छवि चलते विजय शर्मा ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपनी पहचान तो बनाई और भाजपा ने उन्हें सम्मान देते हुए उपमुख्यमंत्री के पद से नवाजा। वहीं विष्णुदेव साय ने विधानसभा चुनाव में आदिवासी समाज में कांग्रेस के प्रति पनपे असंतोष को भाजपा के साथ खड़े करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसे में पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ को पहला आदिवासी मुख्यमंत्री दिया। साथ ही सामाजिक संतुलन और समरसता की एक नई मिसाल देश के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेश की। छत्तीसगढ़ में मोदी की गारंटी पर जनता ने विश्वास कर भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया है।
वैसे ये तो आने वाली 4 जून की तारीख को ही पता चल पाएगा। लेकिन इतना तय है कि जिस तरीके से भाजपा की रणनीति है, उसके आगे कांग्रेस काफी पीछे हैं। क्योंकि कांग्रेस के अधिकांश नेता और पदाधिकारी-कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में बीजेपी का पलड़ा भारी है। क्योंकि जहां बीजेपी सामूहिकता के मूल मंत्र पर आगे बढ़ रही है। वहीं कांग्रेस बिखरी हुई नजर आ रही है।
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