गरियाबंद। स्थानीय जनप्रतिनिधियों को लेकर खासी नाराजगी है। देवभोग तहसील के परेवापाली गांव (Parevapali village) में 800 की आबादी है। यहां इस बार भी चुनाव बहिष्कार (Election boycott) का ऐलान किया गया है। गांव के बाहर एक बोर्ड भी लगा दिया है, जिसमें लिखा गया है कि नेताओं का प्रवेश वर्जित है। ग्रामीणों का कहना है कि 15 साल में किसी भी सरकार ने उनकी पांच मांगें पूरी नहीं कर सकी, जिससे लोग गांव छोड़कर जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ को अस्तित्व में आने के 24 साल बाद भी गरियाबंद जिले का एक गांव मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहा है। परेवापाली गांव में 446 मतदाता हैं, जो फिर चुनाव बहिष्कार कर रहे हैं। 150 परिवार वाले इस गांव में अब तक 50 परिवार गांव छोड़ कर जा चुके हैं।
ग्रामीणों ने गांव को सेनमूडा और पंचायत मुख्यालय निष्टीगुड़ा को जोड़ने पक्की सड़क, स्कूल भवन, राशन दुकान, पेय जल, कर्चिया मार्ग पर पुल निर्माण और 45 साल पुराने नहर की मरम्मत करने की मांग कर रहे हैं। 2008 से भाजपा सरकार के सुराज अभियान से मांग करते आ रहे हैं, लेकिन अब तक किसी भी सरकार ने इनकी मांगें पूरी नहीं की।
ग्रामीण विद्याधर पात्र, निमाई चरण, प्रवीण अवस्थी ने बताया कि मांगें भाजपा सरकार में पूरी नहीं हुई तो 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव का बहिष्कार किया गया। कांग्रेस सरकार बनी तो हमें आश्वासन मिला, लेकिन कांग्रेस सरकार ने भी मांगें पूरी नहीं की। ग्रामीणों ने बताया कि कलेक्टर से लेकर एसडीएम को भी ज्ञापन दिया गया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
एसडीएम अर्पिता पाठक ने कहा कि ग्रामीणों के भवन, सड़क, पेयजल से जुड़ी ज्यादातर मांगों को मंजूरी मिल चुकी है। पेय जल का काम जारी है। गांव में प्रशासन की टीम जाकर उन्हें मांगों की विस्तृत जानकारी देगी। गांव में मतदाता जागरूकता कार्यक्रम चलाकर ग्रामीणों को मतदान में हिस्सा लेने की अपील की जाएगी।
मूलभूत समस्याओं के कारण गांव में अब तक 50 परिवार ने गांव छोड़ दिया है। 800 की आबादी वाले इस गांव में 150 परिवार रहते थे। ग्रामीणों ने कहा कि 23 परिवार ऐसे हैं, जो अपने नाते रिश्तेदार के गांव में जाकर बस गए। उनका नाम भी वोटर लिस्ट से कटवा दिया गया।
वर्तमान में 446 मतदाता संख्या दर्ज है। इन्हीं में से 35 परिवार में शामिल मतदाता अपने परिवार समेत देवभोग ओर ओडिशा में जाकर बस गए। इन परिवार की खेती किसानी और राशन कार्ड गांव के नाम से है। मतदान करने भी आते हैं।
गांव की कच्ची सड़क बरसात के दिनों में चिकनी मिट्टी के कारण फिसलन हो जाती है। दोपहिया वाहन तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है। प्रसव पीड़ा होने पर गर्भवती को खाट पर लादकर दूर खड़ी एंबुलेंस तक ले जाना पड़ता है। खतरे को देखते हुए गर्भवती महिला को दूसरे गांव में किराए का घर लेना पड़ता है और प्रसव तक उसे बाहर रखना पड़ता है।
इनपुट (भोजेंद्र वर्मा)
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