कभी थी ‘नेता जी’ की बल्ले-बल्ले ! कह गए जनाब ‘बतकुच्चन’ मियां…
By : hashtagu, Last Updated : September 3, 2024 | 2:46 pm
- राजधानी रायपुर के बूढ़ातालाब के पास एक ‘चाय’ की दुकान पर कई राजनीतिक ‘बतकुच्चन टाइप’ जैसे लोगों की अड़ी जमी थी। बातें और डीगें हांके जा रहे थे। क्या भैया, जब आप लोगों की सरकार थी… तो कहते थे कि अरे भाई क्या करें ? इस सरकार में तो कुछ नहीं हो रहा। बस एक आदमी की चल रही है, वह जो चाहे सिफारिशी काम करा सकता है। यहां तो कार्यकर्ताओं की नहीं सुनी जाती है। इस बात को सुनकर कुर्ता पहने नेता जी को जैसे सांप सूंघ गया, क्योंकि ‘अभी-अभी’ वे अपनी पार्टी का ‘बखान’ कर रहे थे कि हमारी पार्टी में सबकी चलती है, चाहे वह छोटा कार्यकर्ता हो या बड़ा। लेकिन इनके बदले सुर पर उन्हीं के पार्टी के कार्यकर्ता ने कहा ‘भैया’ दिन रात मेहनत और मगजमारी कर जब सरकार आ भी जाती है तो हमलोगों को किनारे कर दिया जाता है।
इस दर्द के चलते देखिए न जाने कितने साथी दूसरे पार्टी की गोद में बैठ गए और अब जनता से भी कट गए हैं।इससे किसका नुकसान हुआ है, कभी आप लोग सोचते हो। आप तो संगठन में प्रदेश का पद लिए बैठे हो। लेकिन हम लोग तो सिर्फ जिंदाबाद और मुर्दाबाद के नारे ही लगाते रह जाते हैं। अर आंदोलन में भी बढ़चढ़कर भीड़ जाएं, पुलिस की लाठी खाएं। लेकिन इसका हिसाब तो पार्टी के पास नहीं रहता।
भैया सिर्फ पंजा हिलाकर बाय-बाय-टा-टा करके पब्लिक नहीं फंसती है। अब वह भी समझने लगी है, कि आप जनता से वोट लेने के बाद उसे पहचानते तक नहीं, समस्याओं को दूर करना तो दूर की कौड़ी साबित होती है। सिर्फ हो भी काम जनता लेकर आपके पहुंचती थी, सबसे कहते हो जाएगा, क्या कभी जनता के काम कराने और नहीं करा पाने का हिसाब रखा। मैं जनता जानता हूं, आपने कभी नहीं रखा।
- यही वजह भी रही कि इस बार जब चुनाव में वोट मांगने गए तो जनता भी नेता जी वाले भाव अंदाज में वोट देने का आश्वासन तो दिया लेकिन ईवीएम की बटन किसी और पार्टी के निशान को दबाके जनता अपने घर चली आई। तभी एक सज्जन इस प्रवचन को सुनते हुए कहा, नेता जी अभी भी टाईम है, अपनी टालू-मटालू रैवेये से बाज आइए। सबको सम्मान दीजिए, अगर काम होने लायक है तो हर किसी के काम को तत्काल कराइए। नहीं तो ये पब्लिक नहीं जानती है कि आपके पास हजारों लोगों का काम है, जब काम लोगों का कराते जाएंगे तो वादों के बोझ के तले नहीं दबेंगे। टुच्चन मियां कहते हैं कि भैया सत्ता में पार्टी के आते ही नेता जी के रंग बदल जाते हैं, उन्हें यह पता नहीं, कौन अपना-कौन पराया, वे उन्हें सिर्फ लाइजरों की टोली ही अपनी दिखती है। आगे कहा-समय तो मुट्ठी में रेत के माफिक हैं, अब सत्ता जाने के बाद समझ रहे हैं नेता जी।
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