आदिवासियों की पीड़ा को बेहद करीब से पीएम मोदी ने देखा और ‘मारुति की प्राण प्रतिष्ठा’ कविता में पिरोया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) द्वारा 1983 में लिखी गई एक कविता के कुछ अंश सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।

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  • Updated On - April 9, 2024 / 05:09 PM IST

नई दिल्ली, 9 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) द्वारा 1983 में लिखी गई एक कविता के कुछ अंश सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। इस कविता के जरिए पीएम मोदी ने आदिवासियों की स्थिति और संघर्षों को समझाने की कोशिश की है।

दरअसल, नरेंद्र मोदी ने इस कविता (Narendra Modi wrote this poem) को जिस परिस्थिति में लिखा, वह बड़ा दिलचस्प है। ‘मारुति की प्राण प्रतिष्ठा’ शीर्षक वाली इस कविता का एक अंश जो नरेंद्र मोदी के द्वारा हस्तलिखित है, उसकी प्रति सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर खूब शेयर की जा रही है। इस कविता के अंश को एक्स पर मोदी आर्काइव हैंडल से पहले शेयर किया गया, जहां से इसके वायरल होने का सिलसिला शुरू हुआ।

  • बता दें कि 1983 में जब नरेंद्र मोदी ने यह कविता लिखी तब वह एक आरएसएस (संघ) के स्वयंसेवक थे, उन्हें दक्षिण गुजरात में एक हनुमान मंदिर की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। रास्ता लंबा था और कई किलोमीटर तक कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था।

गांव के रास्ते में उनकी नजर धरमपुर के आदिवासियों पर पड़ी, जिनका जीवन मूलभूत सुविधाओं के अभाव में बेहद मुश्किल था। दुख और व्यथा उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी। उनके शरीर काले पड़ गए थे।

नरेंद्र मोदी ने अपने जीवन में ऐसा दृश्य पहली बार देखा था और इस घटना ने उनके हृदय को करुणा से भर दिया। फिर, घर लौटकर उन्होंने आदिवासियों की स्थिति और उनके संघर्षों को उजागर करते हुए ‘मारुति की प्राण प्रतिष्ठा’ नाम की एक कविता लिखी।

  • बता दें कि गुजरात के धरमपुर में स्थित भावा भैरव मंदिर, पनवा हनुमान मंदिर, बड़ी फलिया और अन्य स्थानीय मंदिरों सहित कई हनुमान मंदिरों में आज भी आदिवासी समुदाय द्वारा पूजा की जाती है।

नरेंद्र मोदी कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि वह अपने ‘वनबंधु’ दोस्तों के साथ धरमपुर जंगल का दौरा अक्सर किया करते थे। इस दौरान वे भगवान हनुमान की मूर्तियां स्थापित करते थे और छोटे मंदिर बनाने का भी काम करते थे।

  • संक्षिप्त शब्दों में, नरेंद्र मोदी की इस कविता में सहानुभूति और करुणा की एक अद्वितीय भावना झलकती है। उनकी इस कहानी से हमें यह बात समझ में आती है कि नरेंद्र मोदी आरंभ से ही इस तथ्य से पूरी तरह से अवगत थे कि भारत निर्माण के लिए समाज में समावेशी विकास होना जरूरी है। ऐसे विचार केवल वही प्रकट कर सकता है, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के साथ बिताया हो।

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