नई दिल्ली, 27 फरवरी (आईएएनएस)। 27 फरवरी यानी आज ही के दिन 1931 को अंग्रेजों से लड़ते हुए चंद्रशेखर आजाद शहीद हो गए थे। आज उनकी शहादत का दिन है। लेकिन, इतने साल तक आजाद भारत में सत्ता में रही कांग्रेस की सरकारों (Congress governments) ने चंद्रशेखर आजाद तो छोड़िए देश के अन्य स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों (Revolutionaries of freedom struggle) को वह सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे। जबकि कांग्रेस की तरफ से नेहरू-गांधी परिवार के लोगों को ऐसे दिखाया गया जैसे देश को आजादी का स्वाद उन्हीं की वजह से चखने को मिला हो।
आज राम प्रसाद बिस्मिल, रासबिहारी बोस हों या राजेंद्र लहरी, बटुकेश्वर दत्त हों या लाला लाजपत राय, चंद्रशेखर आजाद हों या फिर बाल गंगाधर तिलक, जतिन दास हों या फिर भगत सिंह ऐसे अनगिनत क्रांतिकारी जो देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए। उन्हें कभी सम्मान तो छोड़िए छात्रों को पढ़ाए जाने वाली इतिहास की किताबों में भी वह स्थान नहीं दिया गया जो उन्हें मिलना चाहिए था।
देश के इन आजादी के दीवानों के साथ कांग्रेस सरकार ने कैसा व्यवहार किया इसकी बानगी देखिए देश की जनता जिस भगत सिंह को शहीद-ए-आजम कहती है उसे कांग्रेस की सरकार ने कभी ऑफिशियल रिकॉर्ड में ऐसा नहीं माना। किताबों में उनके लिए ‘क्रांतिकारी आतंकी’ लिखा गया जो आज भी कई टेक्स्ट में मौजूद है।
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के वंशज इसको लेकर सम्मान जागृति यात्रा तक निकाल चुके हैं। संसद में यह भी मामला उठा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में एक किताब जिसका टाइटल ‘इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस’ है उसमें भगत सिंह को रेवोल्यूशनरी टेररिस्ट (क्रांतिकारी आतंकवादी) लिखा गया है। इस पर कांग्रेस और लेफ्ट को घेरने की कोशिश भी हुई थी।
दरअसल, पूर्व की सरकारों को पता था कि इन क्रांतिकारियों को शहीद का दर्जा मिल जाने से उन्हें ना तो कोई सियासी फायदा मिलने वाला है। ऊपर से स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर जो छवि नेहरू-गांधी परिवार की बनी है उसमें बंटवारा भी हो जाएगा।
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