नेपाल के Gen Z का विद्रोह: “नेता का छोरा गाड़ी में”, आंदोलन की असली वजह क्या है?

इस आंदोलन के बीच एक नारा सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जो इस असंतोष की असली वजह को बयां करता है।

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  • Publish Date - September 10, 2025 / 01:06 PM IST

Nepal Crisis: नेपाल एक ऐतिहासिक मोड़ से गुजर रहा है, जहां युवाओं का गुस्सा सड़कों पर उतर आया है। यह आंदोलन मुख्यतः 14 से 15 साल तक के बच्चों ने शुरू किया है, और उनका विरोध अब हिंसक रूप ले चुका है। नेपाल के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर कई मंत्री इस्तीफा दे चुके हैं। ऐसा अचानक क्या हुआ कि दो दिनों में पूरा देश बदल गया? क्या सरकार द्वारा 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाने से ही यह आंदोलन शुरू हुआ? इसका जवाब है नहीं। सोशल मीडिया पर बैन तो एक चिंगारी था, लेकिन इसके पीछे की असली वजह है आर्थिक असमानता और बुजुर्ग नेताओं से मोहभंग।

इस आंदोलन के बीच एक नारा सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जो इस असंतोष की असली वजह को बयां करता है। इस नारे का हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह है – “नेता का बच्चा गाड़ी में, गाड़ी पहुंची खाड़ी में”। इसका सीधा मतलब है कि युवा इस बात से नाराज हैं कि बुजुर्ग नेताओं ने अपनी सत्ता का दुरुपयोग किया है और अब युवा पीढ़ी को सत्ता मिलनी चाहिए। उनका कहना है, “हमारा नेपाल, हमारे हाथ में।”

नेपाल में बढ़ती आर्थिक असमानता ने इस आंदोलन को और तेज कर दिया है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, नेपाल की 20% से अधिक आबादी गरीबी में है। 2022-23 में 15-24 आयु वर्ग के युवाओं में बेरोजगारी दर 22% से अधिक थी। वहीं, नेपाल के सबसे अमीर 10% लोग सबसे गरीब 40% की कमाई के मुकाबले तीन गुना अधिक कमाते हैं, जो कि देश में गहरे आर्थिक विभाजन को उजागर करता है।

इसके अलावा, नेपाल के युवा नेताओं के बच्चों के आलीशान जीवन को देखकर भी आक्रोशित हैं। काठमांडू के 34 वर्षीय गौरव नेपुने, जो इस विरोध प्रदर्शन का हिस्सा रहे हैं, ने रॉयटर्स को बताया कि उन्होंने तीन महीने तक एक ऑनलाइन कैंपेन चलाया था ताकि यह दिखा सकें कि कैसे मंत्रियों और उनके परिवारों का जीवन आम लोगों से पूरी तरह अलग है।

नेपाल के आंकड़ों के अनुसार, 15-40 आयु वर्ग के लोग देश की कुल जनसंख्या का लगभग 43% हैं, लेकिन उनका मानना है कि सरकार पर बुजुर्ग नेताओं का नियंत्रण है, जो उनकी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को समझ नहीं पाते। इस वजह से 78 वर्षीय पीएम केपी ओली को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया गया है।

नेपाल के युवाओं का झुकाव अब 35 वर्षीय इंजीनियर से रैपर और नेता बने बालेंद्र शाह की ओर बढ़ रहा है। बालेंद्र शाह 2022 में काठमांडू के मेयर चुने गए थे, और उन्हें अब एक संभावित नेता के रूप में देखा जा रहा है।

यह आंदोलन सिर्फ नेपाल की राजनीति ही नहीं, बल्कि वहां के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को भी चुनौती दे रहा है। अब सवाल यह है कि क्या नेपाल में यह युवा विद्रोह भविष्य में बदलाव की नई दिशा तय करेगा?