पेट की जलन और दर्द को हल्के में न लें — ये हो सकते हैं अल्सर के शुरुआती लक्षण
By : dineshakula, Last Updated : August 29, 2025 | 6:05 am
नई दिल्ली। आज की दौड़-भाग भरी जिंदगी में हम अपनी सेहत को पीछे छोड़ आए हैं। सुबह का नाश्ता अक्सर छुट जाता है, दोपहर की थाली तनाव में निगल जाते हैं और रात का खाना थककर किसी तरह खा लेते हैं। इस अव्यवस्थित दिनचर्या का सबसे बड़ा असर हमारे पाचन तंत्र पर होता है।
इसी बिगड़ते पाचन से जन्म लेती है एक गंभीर समस्या — पेट का अल्सर।
क्या है पेट का अल्सर?
आधुनिक चिकित्सा के अनुसार यह पेट की अंदरूनी परत में बना घाव है। वहीं आयुर्वेद इसे केवल एक रोग नहीं, बल्कि शरीर और मन के संतुलन की बिगड़ी हुई स्थिति मानता है।
जब हमारी पाचन अग्नि (डाइजेस्टिव फायर) कमजोर हो जाती है और पित्त दोष बढ़ने लगता है, तब यह गर्मी पेट की भीतरी सतह को नुकसान पहुंचाती है। धीरे-धीरे वहां जलन और घाव बनते हैं — यही अल्सर है। इसे आयुर्वेद में परिणाम शूल या अन्नवह स्रोतों का विकार कहा गया है।
किन कारणों से होता है अल्सर?
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बार-बार चाय या कॉफी पीना
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तीखा, बासी या अनियमित खाना
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लंबे समय तक खाली पेट रहना
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रात में देर तक जागना
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अत्यधिक मानसिक तनाव या गुस्सा
ये सभी आदतें शरीर में पित्त बढ़ाती हैं, जिससे अल्सर की संभावना बढ़ जाती है।
अल्सर के लक्षण क्या हैं?
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पेट के ऊपरी हिस्से में जलन या चुभन
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खाना खाने के बाद भारीपन
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बार-बार एसिडिटी या खट्टी डकारें
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मिचलाना या उल्टी आना
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गंभीर मामलों में उल्टी में खून या काला मल
इलाज: सिर्फ दवा नहीं, जीवनशैली भी बदलिए
एलोपैथी में आमतौर पर एंटासिड, पेनकिलर या एंटीबायोटिक दिए जाते हैं, जो थोड़ी राहत तो देते हैं, लेकिन जब तक जीवनशैली में सुधार नहीं किया जाए, तब तक यह रोग दोबारा लौट सकता है।
आयुर्वेद कहता है कि इलाज केवल शरीर नहीं, मन और आदतों का भी होना चाहिए।
आयुर्वेदिक उपाय जो ला सकते हैं राहत:
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मुलेठी चूर्ण – दूध या गुनगुने पानी के साथ
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शुद्ध देसी घी – पेट को ठंडक देता है
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एलोवेरा जूस और आंवला – सूजन कम करते हैं
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नारियल पानी – पेट की परत को शांत करता है
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धनिया-सौंफ का पानी – पाचन को सुधारता है
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शतावरी चूर्ण – अग्नि को संतुलित करता है
पेट की छोटी तकलीफों को नजरअंदाज न करें। ये आगे चलकर गंभीर रूप ले सकती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, शरीर को संतुलन में लाकर ही हम स्थायी स्वास्थ्य पा सकते हैं।