रायपुर। यहां कहना यह भी गलत नहीं होगा कि किसी भी नई सत्ता की नींव पड़ते ही उसके फिर अगले 5 साल बाद सत्ता में आने की राहें भी बनती हैं। क्योंकि छत्तीसगढ़ की जनता (People of chhattisgarh) ने यह भी देखा था, 2018 के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस में प्रचंड बहुमत के बवाजूद जिस तरीके से सीएम को लेकर होड़ मची और भी सियासी गलियारे में ढाई-ढाई साल सीएम का मुद्दा उठा था। भले ही इसे कांग्रेस नाकारती रही, लेकिन कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र इस समझौते ही बात कहते रहे। जो वक्त के साथ परवान तो नहीं चढ़ा। लेकिन अंदरुनी घमासान कभी पर्दे के पीछे तो कभी सार्वजनिक रुप से दिखा। इसके बाद कांग्रेस के ही विधायक ने अपने मंत्री पर जान से खतरा बताना और फिर ढाई साल बाद दिल्ली में विधायकों की लॉबिंग। इसके बाद फिर टीएस सिंहदेव का पीएम आवास नहीं बनने की वजह से इस्तीफा देना। इन सबके अलावा कांग्रेस पार्टी के अंदरखाने के पूरे घटनाक्रम का जिक्र करना लंबा होगा।
जनघोषणाओं और मोदी की गारंटी की यहां बात नहीं हो रही है। बल्कि सत्ता की जंग में फंसी राजनीतिक दलाें की तुलना में बीजेपी का प्रोफेशनल सियासी मैनेजमेंट। खैर इसके लिए राजनीति के चाणक्य अमित शाह और मोदी के काम की। ये सच है कि पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने यह दिखा दिया कि राजनीति किसी की विरासत नहीं है। जो अच्छा काम करेगा उसे पार्टी आगे बढ़ाएगी। इसके आलावा अमित शाह ने मोदी का वह नारा, जिसे वह अक्सर कहते हैं, सबका साथ-सबका विकास। जिसे चरितार्थ करते हुए बीजेपी ने अप्रत्याशित तरीके से फैसले लेती है। जहां छत्तीसगढ़ में पहला आदिवासी मुख्यमंत्री दिया और मध्यप्रदेश में पिछड़े वर्ग से आने वाले मोहन यादव को सीएम की कमान। साथ राजस्थान में बीजेपी ने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर सभी को चौंका दिया। बहरहाल, यही अनूठा प्रयोग देश की जनता के मानस में बीजेपी की छवि दूसरी अन्य पार्टियों से अलग छवि बनाती है।
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