CG-Story : जबड़ा लगाने की व्यवस्था नहीं और कहने को डेंटल कॉलेज

By : hashtagu, Last Updated : January 5, 2025 | 3:05 pm

रायपुर। छत्तीसगढ़ के इकलौते शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय (Government Dental College) का अजब हाल है। यहां दांत तोड़ने और सामान्य बीमारियों (Teeth breaking and common diseases) का इलाज किया जाता है। लेकिन जबड़ा लगाने या ऐसी परेशानी जिसमें मरीज को भर्ती करना पड़े, वह नहीं किया जाता। वजह… अस्पताल में मरीजों को भर्ती करने की सुविधा ही नहीं है। आईपीडी के मरीजों को या तो दूसरे अस्पताल जाने की सलाह दी जाती है अथवा आंबेडकर अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है।

  • इकलौते सरकारी महाविद्यालय में नियमित ओपीडी में तीन से चार सौ मरीज अपनी जांच के लिए पहुंचते हैं। दांत तोड़ने जैसा कम समय में होने वाला इलाज तो यहां कर दिया जाता है, मगर जबड़ा ट्रांसप्लांट सहित मरीजों को भर्ती कर उपचार की प्रक्रिया यहां पूरी नहीं हो पाती। डेंटल अस्पताल के मरीजों के लिए आंबेडकर अस्पताल में दो बेड आरक्षित हैं, मगर आवाजाही की समस्या के कारण मरीज भर्ती नहीं हो पाते, इसलिए उन्हें दूसरे अस्पताल जाने की सलाह दी जाती है।

वर्ष 2003 में स्थापित डेंटल कॉलेज में उपचार संबंधी सुविधाओं के विस्तार के लिए विभिन्न योजनाओं को मंजूरी दी गई है, जो कई साल बीतने के बाद भी पूरी नहीं हो पाई है। यहां डे-केयर सर्जरी यानी दिन में मरीजों को भर्ती करने की योजना बनाई गई थी। इसके लिए एक छोटे वार्ड की आवश्यकता थी। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव द्वारा बीस बेड का आईपीडी वार्ड शुरू करने की मंजूरी दी गई थी। तीन साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बाद भी यह वार्ड तैयार नहीं हो पाया है। आईपीडी के कारण ओटी का काम अधूरा है, जिसकी जरूरी मशीनें और आवश्यक स्टाफ की व्यवस्था प्रस्ताव में ही सिमटकर रह गई है और शासकीय डेंटल कालेज में उपचार भगवान भरोसे चल रहा है।

आयुष्मान से दूर दांतों की बीमारी

लोगों को विभिन्न तरह की बीमारियों के इलाज की निशुल्क सुविधा स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत मिल जाती है। दांतों की बीमारी के इलाज को सालों पहले योजना से हटाया गया था जिसके रिव्यू की आवश्यकता अभी तक नहीं की गई है। निजी अस्पतालों में इस बीमारी के इलाज के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं।

नहीं मिली सीबीसीटी मशीन

  • जबड़ों की थी-डी स्कैनिंग तथा दांतों और मसूड़ों से संबंधित छोटी-बड़ी बीमारियों की सटीक जांच के लिए सीबीसीटी मशीन खरीदी को मंजूरी दी गई थी। लगभग एक करोड़ की मशीन को स्थापित करने कालेज के भूतल में जगह का चुनाव कर लिया गया मगर सीजीएमएससी ने फंड के अभाव में इसकी खरीदी ही नहीं की गई।

रानी मशीनों के भरोसे इलाज

डेंटल कालेज में आने वाले मरीजों की जांच और इलाज पुरानी मशीनों की मदद से की जाती है। मशीनों की क्षमता काफी कम हो चुकी है और कई बार आउटडेटेड होने से बंद हो जाती है। मरीजों के लिए मौजूद साफ्ट टिशू लेजर मशीन लगातार बिगड़ती है और इसे सुधारने के लिए होने वाले खर्च की बड़ी राशि वहन करना मुश्किल हो चुका है।

प्रस्ताव भेजा जा चुका

शासकीय दंत चिकित्सा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. विरेन्द्र वाढ़ेर ने बताया कि, सुविधाओं के विस्तार के लिए समय-समय पर प्रस्ताव बनाकर भेजा जाता है। इस पर अंतिम फैसला शासन स्तर पर लिया जाता है।