रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों (Political parties) के घोषणा पत्र में स्थानीय मुद्दे (Local issues in manifesto) लगभग गायब ही हैं। सिर्फ लोकलुभावन वादों की लंबी फेहरिश्त पर सत्ता के लिए जंग छिड़ी हुई है। लेकिन स्थानीय मुद्दे सड़कों की जर्जर हालत सहित मूलभूत सुविधाओं को लेकर घोषणा पत्र में न के बराबर ही जगह मिली है। पहले चरण की वोटिंग के बाद अब दूसरे चरण का मतदान 17 नवंबर को होना है। ऐसे में जो इनपुट विधानसभा क्षेत्रों से मिल रहे हैं, उसके मुताबिक इस चरण में स्थानीय मुद्दे को लेकर ही मतदाता मुखर हैं। उन्हें पार्टियों के वादों के अलावा अभी तक मूलभूत सुविधाओं के समस्याओं के निराकरण नहीं होने पाने से उनमें नाराजगी देखी जा रही है।
बरहाल, अपनी-अपनी चुनावी जनघोषणा पत्र की बेहतरीन घोषणा के बदौलत ही पार्टियां अपनी चुनावी नैया पार लगाने की जुगत में हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात है कि किसी भी राजनैतिक पार्टी ने ग्राउंड लेबल पर मतदाताओं की नब्ज नहीं पकड़ सके। ये अलग बात है कि सभी राजनीतिक पार्टियां सर्वसुलभ कराने की बात कर रही हैं। लेकिन मतदाता दबी जुबान से कहता नजर आ रहा है कि चाहे कोई हारे जीते लेकिन हालात तो वही रहेंगे। इससे मतदाताओं में कमोवेश कहीं-कहीं मतदान के प्रति उदासीनता भी दिख रही है। फिर भी प्रथम चरण में उत्साहजनक वोटिंग हुई जो 70 प्रतिशत के पार गया। हां, ये भी सच है कि कुछ ग्रामीण अंचल में चुनाव बहिष्कार की खबरें आईं। कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं, जो विकास की किरण से कोसो दूर हैं। इन विसंगतियों को दूर करने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियाें को आत्ममंथन करने की जरूरत है। तभी मतदान के प्रति लोगों में उत्साह बना रहेगा।
छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनावी रण में अब दूसरे चरण के चुनाव का समीकरण यहां के स्थानीय मुद्दों पर निर्भर रहेगा। कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दल अपने घोषणा-पत्रों के धान किसान बोनस जैसे मुद्दों को लेकर तो प्रचार कर ही रहे हैं। वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में दुर्ग संभाग की कुल 20 में से 18 सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराया था। दुर्ग और बस्तर की 20 विधानसभा सीटों पर 70.87% वोटिंग हुई है, जो साल 2018 के मुकाबले 6.01 फीसदी कम है।
छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनावी रण में अब दूसरे चरण के चुनाव का समीकरण यहां के स्थानीय मुद्दों पर निर्भर रहेगा। कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दल अपने घोषणा-पत्रों के धान, किसान, बोनस, कर्ज माफी, महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों को लेकर तो प्रचार कर ही रहे हैं, साथ ही स्थानीय मुद्दों को भी पूरी तवज्जो दे रहे हैं।
उन्होंने जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों को भी साधा। दूसरे चरण में स्थानीय मुद्दों को लेकर दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दलों ने अलग ही रणनीति बनाई है, जिसका प्रभाव आगामी दिनों में देखने को मिलेगा। बस्तर संभाग की सीटों पर मतदान हो चुका है। इस तरह प्रदेश में अब चार संभागों में ही मतदान होना है।
शहर में भू-माफिया और गांव में अतिक्रमण प्रदेश के सबसे बड़े बिलासपुर संभाग के आठ जिलों के अंतर्गत 24 विधानसभा सीटें आती हैं। शहरी इलाकों में कानून-व्यवस्ता की स्थिति खराब होना और भू-माफियाओं का सक्रिय होना बड़ा मुद्दा है। गांव में बीपीएल सर्वे सूची, अतिक्रमण, धान खरीदी केंद्र और राशन दुकानें प्रमुख मुद्दे हैं। जांजगीर-चांपा, कोरबा, रायगढ़ में बिजली संयंत्रों से उड़ती राख बड़ा मुद्दा है। वर्तमान में यहां 13 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। सात सीटें भाजपा के पास, दो छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे) और दो सीटें बहुजन समाज पार्टी के पास हैं।
हाथी का आतंक और रेल सुविधा बड़ा मुद्दा सरगुजा संभाग की बात करें तो यहां 200 से अधिक गांव जंगली हाथियों से प्रभावित हैं। हाथी इस सीजन में धान सहित दूसरी फसलों को खाने के लिए जंगल छोड़कर आबादी क्षेत्रों के नजदीक पहुंच जाते हैं। अब भी सरगुजा को छोडकर संभाग के दूसरे जिलों में जंगली हाथियों के अलग-अलग दल स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं। सरगुजा में रेल विस्तार की मांग को लेकर बड़े आंदोलन होते रहे हैं। इस संभाग की सभी 14 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं।
पेयजल, प्रदूषण बड़ा मुद्दा रायपुर और दुर्ग संभाग में पेयजल और प्रदूषण सबसे बड़े मुद्दे हैं। इसके अलावा बेहतर कानून-व्यवस्था, शहरों में सफाई और किसानों के खाद-बीज के मुद्दे भी हैं। रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र उरला, सिलतरा में प्रदूषण की मार से लोग परेशान हैं। इसी तरह बिरगांव में पानी की किल्लत बड़ा मुद्दा है।
वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में दुर्ग संभाग की कुल 20 में से 18 सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराया था, जबकि भाजपा दो सीटों पर सिमट गई थी। वहीं, रायपुर संभाग की बात करें तो यहां की 20 सीटों में से 14 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। पांच सीटें भाजपा के पास, एक छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे) के पास है।
इनपुट (मिडिया रिपोटर्स)
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