MTech-MBA करने वालीं CG की ‘दो बेटियां’ खेती में चमकीं

By : madhukar dubey, Last Updated : January 2, 2023 | 1:50 pm

छत्तीसगढ़। हौंसलों की उड़ान और कुछ कर गुजरने की तमन्ना मन में ठान लें तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। लेकिन जब आप जिस विषय के विशेषज्ञ हो, उसे न कर लीक से अलग हटकर दूसरे क्षेत्र में करने की सोच लें। ऐसे में तामम दुश्वारियां आना स्वभाविक है, बस जरूरत है पूरे मनोयोग के साथ कर्म के पथ चलते रहें। फिर आपको आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता।

ऐसा ही कमाल हमारी छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की ‘दो बेटियों’ ने कर दिखाया। इन्होंने MTech और MBA करने के बाद भी पुश्तैनी खेती किसानी (Farming) की बागडोर संभालने के लिए आगे आईं। आज वे, खेती में सफलता के झंडे गाड़ दीं। इनकी कहानी आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी है। वहीं बेटियों की क्षमता को कमतर आंकने वालों के लिए  सबक भी।

आइए, ऐसी ही दो बेटियों की बेमिसाल कहानी आपके सामने रखते हैं। इनके नाम हैं, कुरूद के चरमुडि़या गांव की स्मारिका और महासमुंद जिले के कमौद गांव की स्मारिका। भले ही खेती किसानी के क्षेत्र में महिलाएं सफलता की इबारतें लिख रहीं हैं। लेकिन इनकी कहानी इसलिए भी थोड़ी अलग हैं। इन्होंने एमटेक और एमबीए करने के बाद एक अलग क्षेत्र में खुद को आजमाया और 100 प्रतिशत खरी उतरीं।

स्मारिका के सब्जी की पहुंच, अब सात समंदर पार तक

कुरूद के गांव चरमुडि़या की स्मारिका ने तकनीकी शिक्षा की कदम बढ़ाए। यानी उसने शुरुआती दौर में कम्यूटर साइंस में बीई की। इसके बाद इसने एमबीए किया। यहां उसने खुद की प्रतिभा के दम पर एक कंपनी से जुड़ीं। जहां उन्हें 10 लाख रुपए का पैकेज मिलने लगा। सब कुछ ठीक चल रहा था। तभी अचानक इनके पिता दुर्गेश की तबीयत खराब हुई। जनवरी में 2020 में इनके लीवर का ट्रांसप्लांट हुआ। इसके बाद घर की पूरी कमान इस बेटी के कंधे पर आगई। लेकिन अपनी माटी यानी पुश्तैनी खेती के प्रति इतना लगाव था, कि वे इसे संभालने की सोचीं।

सुनिए अब इनकी जुबानी, विदेश भी रहीं हैं सब्जियां

स्मारिका बतातीं हैं पारिवारिक हालात के बीच सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी। छोटे-भाई को संभालना तो था ही, साथ ही पुश्तैनी खेती को भी। इसके लिए हमने हिम्मत नहीं हारी। जब पिता जी खेती करते थे, उस समय की कुछ जानकारी मुझे थी। ऐसे में मैंने शुरूआत की, उसके बाद समय के साथ खेती करने के तरीकों का अनुभव बढ़ गया। हमने कुछ अलग करने की ठानी। अच्छे गुणवत्ता के बीज से फसल उगानी शुरू की। मैं पूरा जोर सब्जी पर दे रही हूं।

बतातीं हैं, आज हमारे पास दिल्ली, यूपी, कोलकाता, आंध्र और बिहार तक के विक्रेता हम से थोक में सब्जी ले जा रहे हैं। अब मेरी तैयारी है कि नए साल में विदेश के भी आर्डर लूंगी। कहती हैं कि आज हमारे इस व्यवसाय से करीब 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल रहा है।

महासमुंद की वल्लारी भी कम नहीं, ये खेती से कमा रहीं लाखों

इसी नक्शे कदम पर छत्तीसगढ़ की एक और बेटी वल्लारी की भी कहानी मिलती जुलती है। महासमुंद के कमरौद गांव की वल्लारी ने भी 6 साल पूर्व 15 एकड़ से खेती करना शुरू किया था। 32 साल की वल्लारी आज खुद के 24 एकड़ जमीन पर सब्जी और फलों की खेती कर रही हैं। इनकी खेत में उगने वाले मिर्च, अमरुद, बांस, पपीता, नारियल व स्ट्राबेरी की धूम सीमावर्ती राज्यों में है। आज ये एक नहीं बल्कि 3 गांवों तक अपने खेती का दायरा बढ़ा लिया है।

खेती का रकबा बढ़ने से फसलों के उत्पादन में भारी इजाफा हुआ है। वल्लरी ने बताया, पापा ऋषि से खेती के हुनर का काम अपने पिता से सीखा। वे बताती हैं,शुरू में लोग हतोत्साहित करते थे कि लड़की होकर खेती करती हैं। पर अब महासमुंद के हर गांव के महिला समूह मुझसे उन्नत किस्म से खेती सीख रहे हैं। मेरा काम देखकर आईजीकेवी ने मुझे बोर्ड मेंबर बनाया है। मैं लगातार स्टडी करती हूं। कीटों को नियंत्रण करने के लिए भी नए-नए प्रयोग करती हूं। जब ये सफल हो जाते हैं, तो दूसरे किसानों से भी साझा करती हूं।