चलपति: माओवादी आंदोलन के विचारक और रणनीतिकार, जिनकी मौत संगठन को गहरी क्षति पहुंचाएगी

चलपति का जन्म आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में हुआ था। वह करीब 25-27 साल पहले माओवादी आंदोलन से जुड़े थे। उनकी यात्रा एक सैनिक और विचारक के रूप में थी। वह न सिर्फ एक जुझारू सैन्य नेता थे, बल्कि एक गहरे विचारक भी थे।

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  • Publish Date - January 21, 2025 / 12:06 PM IST

रायपुर : माओवादी विचारधारा में रचनात्मक और सशक्त नेतृत्व हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। इस विचारधारा को फैलाने में कई प्रमुख नेताओं का योगदान रहा है, जिनमें से एक थे चलपति उर्फ जय राम (Chalapathy) । उनका नेतृत्व और विचारधारा माओवादी आंदोलन के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। वह न केवल माओवादी संगठन के एक कुशल रणनीतिकार थे, बल्कि उन्होंने इस विचारधारा को फैलाने और युवाओं को प्रेरित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खासकर उस दौर में जब माओवादी आंदोलन में आंतरिक मतभेद और विचारधारा की कमी महसूस हो रही थी, चलपति की सोच और नेतृत्व ने इसे नई दिशा दी।

चलपति का जन्म आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में हुआ था। वह करीब 25-27 साल पहले माओवादी आंदोलन से जुड़े थे। उनकी यात्रा एक सैनिक और विचारक के रूप में थी। वह न सिर्फ एक जुझारू सैन्य नेता थे, बल्कि एक गहरे विचारक भी थे। कहते हैं कि वह एक गंभीर पाठक थे और उनके विचारों में गहराई थी। माओवादी विचारधारा में उनका योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था, और उनकी सोच ने इसे नया आयाम दिया।

माओवादी संगठन के दूसरे शीर्ष नेतृत्व, जैसे नम्बाला केशव राव उर्फ बसवराज, जो केंद्रीय सैन्य आयोग के प्रमुख हैं, को वह सीधे रिपोर्ट करते थे। चलपति की बौद्धिक क्षमता और सैन्य रणनीति ने माओवादी संगठन के लिए एक मजबूत नींव तैयार की। उनका मुख्य कार्य नई पीढ़ी को माओवादी विचारधारा से जोड़ने का था, क्योंकि संगठन में बौद्धिक प्रतिभा की कमी महसूस हो रही थी।

जब माओवादी संगठन आंध्र-ओडिशा सीमा (AOB) जैसे क्षेत्रों में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब चलपति ने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। वह AOB क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरे। उनके पास न केवल माओवादी रणनीतियों का गहरा ज्ञान था, बल्कि वह एक कुशल सैन्य नेता भी थे। उन्होंने श्रीकाकुलम और कोरापुट जैसे क्षेत्रों में माओवादी गतिविधियों को सही दिशा दी।

चलपति का जीवन माओवादी विचारधारा के लिए समर्पित था, और उन्होंने कई प्रमुख अभियानों का नेतृत्व किया। उनकी पत्नी, अरुणा, भी एक माओवादी थीं, जो युद्ध अभियानों में भाग लेती थीं। हालांकि, जब चलपति ने अरुणा से विवाह किया, तो माओवादी केंद्रीय समिति को यह पसंद नहीं आया और उन्हें पदावनत किया गया। लेकिन इसके बावजूद उनकी भूमिका महत्वपूर्ण बनी रही। अरुणा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई है, लेकिन कहा जाता है कि वह भी शिक्षा प्राप्त थीं और विशाखापत्तनम के पेंडुर्थी क्षेत्र से ताल्लुक रखती थीं।

चलपति की बौद्धिक क्षमता और सैन्य रणनीति के कारण उनका माओवादी आंदोलन में योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था। एक समय था जब माओवादी संगठन आंध्र-ओडिशा सीमा में नेतृत्व की कमी महसूस कर रहा था, और ऐसे समय में चलपति ने संगठन की दिशा को मजबूती से थामे रखा। उनके नेतृत्व में युवाओं को प्रेरणा मिली और उन्होंने माओवादी विचारधारा को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, उनकी व्यक्तिगत जीवन की कुछ घटनाओं के कारण उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद उनका संगठन में महत्व कभी कम नहीं हुआ।

हालांकि, चलपति की मौत माओवादी संगठन के लिए एक गंभीर संकट का संकेत बन गई है, जो संगठन के अंदर विचारधारा और नेतृत्व का गहरा संबंध है। उनके निधन के बाद यह स्पष्ट है कि यह माओवादी आंदोलन को गहरी क्षति पहुंचाएगी। हाल ही में छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में हुई मुठभेड़ में चलपति की मौत ने संगठन को एक बहुत बड़ी क्षति पहुंचाई है।

मुठभेड़ सोमवार रात से मंगलवार तक चली, जब छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सुरक्षा बलों ने संयुक्त रूप से कूलारीघाट के जंगलों में माओवादी उपस्थिति की जानकारी पर ऑपरेशन चलाया। मुठभेड़ में चलपति और उनके साथ 13 अन्य माओवादी नेता मारे गए। चलपति पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था, और वह माओवादी केंद्रीय समिति का एक अहम सदस्य था। मुठभेड़ के दौरान सुरक्षा बलों ने बड़ी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद और IEDs (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) भी बरामद किए।

यह मुठभेड़ माओवादी संगठन के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है, क्योंकि चलपति जैसे विचारक और रणनीतिकार की मौत ने संगठन के अंदर एक नेतृत्व शून्य पैदा कर दिया है। एक ऐसे समय में जब माओवादी विचारधारा में आंतरिक मतभेद और नेतृत्व की कमी महसूस हो रही थी, तब चलपति का होना संगठन के लिए एक संजीवनी बूटी था। अब, माओवादी आंदोलन को एक बार फिर नए विचारकों और रणनीतिक नेताओं की तलाश होगी।

चलपति की मौत यह साबित करती है कि माओवादी आंदोलन में विचारधारा और नेतृत्व का कितना गहरा और स्थायी संबंध है। उनके विचार और रणनीतियों ने माओवादी आंदोलन को एक मजबूत दिशा दी थी, लेकिन अब, उनके निधन के बाद संगठन को यह साबित करना होगा कि वह इस कठिन दौर में नए नेतृत्व और विचारधारा के साथ आगे बढ़ सकते हैं। उनकी शहादत ने माओवादी संगठन को एक गहरी खामी में डाल दिया है, जिससे उबरने में शायद उसे काफी समय लगे।

चलपति का योगदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। उनके नेतृत्व और विचारधारा ने न केवल माओवादी आंदोलन को प्रेरित किया, बल्कि उसे एक नई दिशा और उद्देश्य भी दिया। उनकी कमी माओवादी आंदोलन के लिए एक स्थायी क्षति होगी, और इसके असर संगठन पर लंबे समय तक महसूस किए जाएंगे।