रायपुर/ एक छोटे से गांव से निकल कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना और वहां से आईआईटी धनबाद का सफ़र और फिर टाटा स्टील जैसे बड़ी कंपनी में मैनेजर (Manager in company) का प्रतिष्ठापूर्ण पद प्राप्त करना किसी भी श्रमिक परिवार के बच्चे के लिए एक सपने जैसा है। इस सपने को हकीकत में बदलने का काम एक श्रमिक परिवार के होनहार बच्चे ने कर दिखाया है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर राजधानी रायपुर में आयोजित राज्य स्तरीय श्रमिक सम्मेलन में श्रमिक परिवार के इस होनहार युवा श्री पंकज साहू को इस शानदार कामयाबी के लिए सम्मानित किया और उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी। वर्तमान में पंकज साहू ओडिशा के जैपुर जिले के कलियापानी स्थित टाटा स्टील कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत है। पंकज साहू (Pankaj Sahu) इस सम्मान के लिए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का हृदय से आभार मानते हैं।
पंकज साहू की कहानी संघर्ष, मेहनत, इच्छाशक्ति और सरकारी योजनाओं से मिले सहयोग का एक जीता जागता उदाहरण है। धमतरी जिले के छोटे से गाँव दर्री के निवासी पंकज एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पंकज साहू बताते हैं कि उनके पिता श्री जयलाल साहू धमतरी के एक निजी दुकान में श्रमिक के रूप में कार्यरत थे और उनकी माता ज्ञानबती साहू रेज़ा मज़दूर के रूप में काम करती थी। वे छत्तीसगढ़ शासन के श्रम विभाग में निर्माणी श्रमिक के तौर पर पंजीकृत है। पंकज की प्रारंभिक पढ़ाई गाँव में ही हुई थी।
पंकज बताते है कि उन्हें बचपन से ही मैथ्स, साइंस जैसे विषयों में विशेष रूचि थी, उनके पिता भी मैथ्स ग्रेजुएट है। आर्थिक परिस्थिति के चलते उन्हें श्रमिक के रूप में कार्य करना पड़ रहा था। पंकज साहू ने स्कूल के दिनों में ही तय कर लिया था कि इंजीनियर बनकर परिवार की परिस्थिति को बदलेंगे। लेकिन जब इंजीनियरिंग करने की बारी आई, तो परिवार के सामने आर्थिक चुनौतियाँ खड़ी हो गईं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई का खर्च वहन करना उनके परिवार के लिए नामुमकिन था।
पंकज साहू और उनके परिवार के लिए छह हज़ार की सीमित आय में शिक्षा की ऊँचाइयों को छूना आसान नहीं था। पंकज साहू भावुक होकर कहते हैं कि उन्होंने अपने स्कूल शिक्षा के दौरान ही स्वयं सेवी संस्था के साथ जुड़कर काम करना शुरू कर दिया था। गर्मियों की छुट्टियों में आस पड़ोस के बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन दिया करते थे। उससे मिली मेहताना से अपने पढ़ाई का खर्चा उठाते थे। उन्होंने बताया कि 12वीं पास होने के बाद पैसे की कमी होने के कारण वे पीईटी का फार्म तक नहीं भर पाये थे।
ऐसे में उन्हें बीएससी में एडमिशन लेना पड़ा। लेकिन पंकज साहू की इंजीनियरिंग करने की चाहत तब भी क़ायम रही। उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई के साथ धमतरी में निजी दुकानों में काम करना शुरू किया, साथ ही प्राइवेट कोचिंग और एनजीओ के साथ काम जारी रखा। इस तरह उन्होंने पैसे जोड़कर पीईटी परीक्षा में पास होकर शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज जगदलपुर में माईनिंग डिपार्टमेंट में बीई में दाखिला लिया। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही एनजीओ में वॉलंटियर के रूप में कार्य करते रहे जिससे वे अपने कॉलेज और हॉस्टल का व्यय वहन कर सका।
इंजीनियरिंग के बाद भी पंकज की राह आसान नहीं थी। उन्होंने एम टेक करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने गेट की परीक्षा पास की, लेकिन मुश्किलें थमी नहीं थी, एम टेक की पढ़ाई का खर्च सालाना लगभग एक लाख रुपये था, जो उनके परिवार के लिए एक भारी बोझ था। इतनी सीमित आय में उच्च शिक्षा ग्रहण करना मुश्किल था, लेकिन पंकज के जीवन में श्रम विभाग द्वारा संचालित मेधावी छात्र-छात्रा शिक्षा प्रोत्साहन योजना मील का पत्थर साबित हुई। उन्हें गांव के कुछ जागरूक जनप्रतिनिधियों से योजना के बारे में पता चला, जिसने उनके सपनों को नई उड़ान मिली। योजना के तहत पंकज की एमटेक की शिक्षा का पूरा खर्च छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा वहन किया गया। इस योजना का लाभ लेते हुए उन्होंने आईआईटी धनबाद से एमटेक की डिग्री प्राप्त की और अपनी कड़ी मेहनत और लगन के कारण गोल्ड मेडल हासिल किया।
धनबाद में अपनी एमटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पंकज को वेदांता रिसोर्स में प्लेसमेंट मिला, और जल्द ही उन्हें टाटा स्टील कंपनी में मैनेजर के पद पर नियुक्ति मिली। आज पंकज सालाना 18 लाख रुपये के पैकेज पर कार्यरत हैं और उनका जीवन पूरी तरह से बदल चुका है।
पंकज ने भावुक होते हुए कहते हैं कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री मेधावी छात्र-छात्रा शिक्षा प्रोत्साहन योजना और उनके माता-पिता का सहारा न मिलता, तो शायद उनके लिए इतनी बड़ी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट तक पहुँचना एक सपना ही रह जाता। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार का आभार व्यक्त किया, जिसके चलते उनके जैसे कई गरीब बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर मिल रहा है।
पंकज की कहानी उन लाखों बच्चों के लिए प्रेरणास्रोत है जो आर्थिक तंगी के कारण अपने सपनों को छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। यह कहानी बताती है कि सरकारी योजनाएँ यदि सही ढंग से लागू हों और जरूरतमंदों तक पहुँचें, तो वे किसी के भी जीवन में चमत्कारी बदलाव ला सकती हैं।
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