रमन के बयान पर भड़की कांग्रेस, आरक्षण पर खोले कई राज!
By : madhukar dubey, Last Updated : November 17, 2022 | 8:25 pm
छत्तीसगढ़। डाॅक्टर रमन सिंह ने भानुप्रतापपुर रवाना होने से पूर्व गुरुवार को कहा कि चुनाव की वजह से कांग्रेस सत्र बुला रही है। आरक्षण के मसले पर चाहिए कि कोर्ट में सही ढंग से पक्ष रखा जाए। इनके इस बयान के बाद सियासत एक फिर गरमा गई है। जिस पर कांग्रेस से पलटवार करते हुए कड़ा विरोध जताया है। कांग्रेस का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और भाजपा नहीं चाहती कि आदिवासी समाज का आरक्षण बहाल हो।
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने विशेष सत्र का विरोध कर भाजपा की मंशा स्पष्ट कर दिया
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने विशेष सत्र का विरोध कर भाजपा की मंशा स्पष्ट कर दिया। कांग्रेस सरकार ने आदिवासी समाज के आरक्षण की बहाली के लिए विधानसभा का विशेष सत्र 1 और 2 दिसंबर को बुलाया है। शुक्ला ने आगे कहा कि रमन सिंह विधानसभा सत्र बुलाए जाने पर सवाल खड़ा कर रहे है। १५ साल तक मुख्यमंत्री रहे है, उन्हें मालूम है आदिवासी समाज के आरक्षण पर जो गतिरोध आया है उसका समाधान विधानसभा में होगा, फिर उनका विरोध बताता है भाजपा आदिवासी समाज को ३२ प्रतिशत आरक्षण की पक्षधर नहीं है। रमन सिंह के पहले नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने भी विशेष सत्र का विरोध किया था। अजय चंद्राकर भी विशेष सत्र पर सवाल खड़ा कर चुके है।
कहा की वजह से ही आज ऐसे हालात पैदा हुए
कांग्रेस की तरफ से कहा गया है कि भाजपा नेताओं की तिलमिलाहट बताती है कि उनके लिए आदिवासी समाज का आरक्षण बहाली और राजनैतिक मुद्दा मात्र है। इन नेताओं के बयानों से साफ हो गया कि भाजपा ने जानबूझकर हाईकोर्ट में आदिवासी समाज के आरक्षण का मुकदमा हारने के लिए ननकी राम कंवर और मुख्य सचिव की कमेटी के बारे में अदालत से छुपाया था।
रमन सरकार की वजह से घटा आरक्षण
सुशील शुक्ला ने कहा कि 2012में बिलासपुर उच्च न्यायालय में 58 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर हुई तब भी रमन सरकार ने सही ढंग से उन विशेष कारणों को पेश नहीं किया जिसके कारण राज्य में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर ५८ प्रतिशत किया गया। आरक्षण को बढ़ाने के लिए तत्कालीन सरकार ने तत्कालीन गृहमंत्री ननकी राम कंवर की अध्यक्षता में मंत्री मंडलीय समिति का भी गठन किया था। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में भी कमेटी बनाई गई थी। रमन सरकार ने उसकी अनुशंसा को भी अदालत के सामने पेश नहीं किया जिसका परिणाम है कि अदालत ने 58 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को रद्द कर दिया। रमन सरकार की बदनीयती से यह स्थिति बनी है।