छत्तीसगढ़। कहते हैं कि मन जिस काम में लगे उसे शिद्दत के साथ करो। बस उसके प्रति इमानदारी से गई मेहनत और लगन एक न एक दिन जरूर रंग लाएगी। वैसे भी हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ गुण और प्रतिभाएं मौजूद रहती हैं। यानी उसकी खासियत कभी खुद से तो कभी किसी के प्रोत्साहन से दुनिया के सामने आती है। फिर क्या वह आपका पैशन ऐसा कमाल दिखाता है कि दुनिया दंग रह जाती है। जब आप किसी काम में सफल होने के लिए काम करते हैं तो ये दुनिया आपके संघर्ष को नहीं देखती लेकिन जिस सफल हो जाओगे तो यही संघर्ष की कहानी लोग जानना चाहेगा। बहरहाल कुछ ऐसे भी शख्स हैं जो किसी भी काम को करते हुए अपने शौक और खुद के अंदर छिपी प्रतिभा को लोगों के सामने लाने में आज कामयाब हैं। जीं हां, एक ऐसे युवक की कहानी जो बीई की पढ़ाई करने के बावजूद उसे शिल्पकला से ऐसा लगाव की वह अब नित नये आयाम लिख रहा है।
मटपरई भित्ति शिल्प कला हमारी संस्कृति से जुड़ी है। यह ग्रामीण परिवेश के साथ रचनात्मकता को दर्शाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, यदि लोग मटपरई कला से जुड़ते हैं तो उन्हें अपने अंदर के हुनर को निखारने का अवसर भी मिलेगा। ये बातें पुराना बस स्टैंड डुमरडीह निवासी अभिषेक सपन ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य एवं राजोत्सव के आयोजन स्थल में लगे स्टाल पर कही।
उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रदर्शनी से लोगों में भी कला सीखने की ललक जागती है। जब लोग मटपरई भित्ति कला से परिचित होंगे, तो रचनात्मकता व नई शैली के साथ इसमें कार्य करेंगे, वे इस क्षेत्र में रोजगार भी पा सकेंगे। अभिषेक ने बताया कि उन्होंने बीई किया है, वे अपने पूर्वजों द्वारा बताए गए शिल्पकला को सहेजने का प्रयास कर रहे है। इसे वे अपने जीवन में रोजगार के रूप में भी अपना रहे हैं। आगे चलकर भी इसी दिशा में वे काम करेंगे।
अभिषेक सपन छत्तीसगढ़ के एकमात्र कलाकार है, जिन्होंने विलुप्त हो चुकी मटपरई कला को जीवंत कर मटपरई कला को बना रहे है तथा जनमानस तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है। मटपरई कला के माध्यम से छत्तीसगढ़ की संस्कृति लोकनृत्य, लोककथा, लोककहानी, लोक परंपरा, तीज त्यौहारो, पशु पक्षी, देवी देवताओं की कृति अपनी कल्पनाशीलता से बना रहा है।
मट-मिट्टी, परई कागज व खल्ली की लुगदी इन सभी को वस्तुओं सड़ा कर बनाई गई कला मटपरई कला कहलाती है। छत्तीसगढ़ की प्राचीन कला है, जिसे बड़े-बुजुर्गों द्वारा बनायी जाती थी। परंतु वर्तमान में ये कला विलुप्त हो गई है। हमारी युवा पीढ़ी छत्तीसगढ़ की कला व संस्कृति को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर में पहुँचाने का प्रयास कर रही है।