रायपुर। (national security law) राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की अधिसूचना जारी के होने के बाद अब इस पर सियासी बवाल मचा हुआ है। इसे लेकर बीजेपी ने इस पर हमलावार रूख अपना लिया है। इसी कड़ी में भाजपा के कद्दावर नेता व पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agarwal) ने भूपेश सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की सरकार अब यहां इमरजेंसी लगाने की कोशिश कर रही है।
3 जनवरी 2023 को राज्य सरकार द्वारा एक असाधारण अधिसूचना जारी की गई है। इसमें कलेक्टरों को असीमित अधिकार दिए गए हैं। कहा कि मुझे लगता है कि अब मुख्यमंत्री जी डर गए हैं और घबरा गए हैं। जिसे लेकर वे पूरी तरह से तानाशाही पर उतर आए हैं। जैसे इंदिरा जी देश में इमरजेंसी लगाई थी। उसी तरह भूपेश बघेल भी उतर गए हैं। यह बहुत दुर्भाग्यजनक है। इसे छत्तीसगढ़ की जनता बर्दाश्त नहीं करेगी।
छत्तीसगढ़ में आगामी 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाला है, जिसको लेकर प्रदेश की तमाम पार्टियां अपने अपने तरीके से चुनावी रणनीति तैयार कर रही है। वहीं भारतीय जनता पार्टी के तमाम बड़े नेताओं का छत्तीसगढ़ में आना-जाना शुरू हो गया है। भारतीय जनता पार्टी 2023 विधानसभा चुनाव को हर हाल में जीतना चाहती है। इसलिए प्रदेश का कोई भी मुद्दा भारतीय जनता पार्टी हाथ से जाने नहीं देना चाहती है। यही कारण है की धर्मांतरण मामला को बीजेपी ने हाथों हाथ उठाया और कांग्रेस सरकार पर जमकर निशाना साधा, हालांकि इस पूरे मामले में भूपेश सरकार बैकफुट पर आ गई।
छत्तीसगढ़ का कवर्धा जिला 2022 में पूरी तरह से सुर्खियों में आ गया था जब वह हिंदू और मुस्लिम झंडा को लेकर आपस में भिड़ गए। मामला इतना तूल पकड़ा कि पूरे कवर्धा जिला में कर्फ्यू लगाना पड़ा हिंदू पक्ष आरोप था कि मुस्लिम पक्ष ने भगवा झंडे को उतारा था और उसका अपमान किया था। इसी बात को लेकर कवर्धा में प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा। यही कारण है भूपेश सरकार ने रासुका जैसे बड़े कदम उठाए हैं।
इस अधिसूचना के मुताबिक राज्य सरकार के पास ऐसी रिपोर्ट है कि कुछ तत्व साम्प्रदायिक मेल-मिलाप को संकट में डालने के लिए, लोक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कोई कार्य करने के लिए सक्रिय हैं, अथवा उनके सक्रिय होने की संभावना है। सरकार को इसका समाधान भी हो गया है।
ऐसे में वह सभी ३१ जिलों के कलेक्टरों-जिला मजिस्ट्रेट को आदेश दिया गया है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा कानून-रासुका की धारा-तीन-२ से मिले शक्तियों का प्रयोग एक जनवरी से ३१ मार्च २०२३ तक की अवधि में कर सकते हैं। अधिवक्ता फैसल रिजवी बताते हैं कि अगर सरकार को ऐसा लगता है कि किसी व्यक्ति अथवा समूह से राष्ट्रीय सुरक्षा अथवा लोक व्यवस्था को गंभीर खतरा है तो वह मजिस्ट्रेट को इसके लिए अधिकृत कर सकती है। यह आदेश एक बार में तीन महीनों के लिए ही जारी किया जा सकता है। बाद में इसे तीन-तीन महीनों के लिए बढ़ाया जा सकता है। इस अधिसूचना से केवल सक्ती और गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिलों को बाहर रखा गया है।
इसमें कहा गया है कि केंद्र अथवा राज्य सरकार किसी व्यक्ति हानिकारक कार्य करने से रोकने, लोक व्यवस्था बनाए रखने अथवा आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति बनाए रखने के लिए ऐसे व्यक्ति को हिरासत में रखने-निरुद्ध करने का आदेश दे सकती है। ऐसा आदेश जारी होने के सात दिन के भीतर राज्य सरकार, केंद्र सरकार को भी इसकी जानकारी देगी। वह आधार भी बताएगी, जिसके तहत ऐसा आदेश जारी किया गया है।
बताया जा रहा है, इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को पहले तीन महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। जरूरत पड़ी तो तीन-तीन महीनों के लिए हिरासत की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। गिरफ्तारी के आदेश को सिर्फ इस आधार पर अवैध नहीं माना जा सकता है कि इसमें से एक या दो कारण स्पष्ट नहीं हैं, उसका अस्तित्व नहीं है अथवा वह अप्रासंगिक है- उस व्यक्ति से संबंधित नहीं है। किसी अधिकारी को ऐसे आधार पर गिरफ्तारी का आदेश पालन करने से नहीं रोका जा सकता है। गिरफ्तारी के आदेश को इसलिए अवैध करार नहीं दिया जा सकता है कि वह व्यक्ति उस क्षेत्र से बाहर हो जहां से उसके खिलाफ आदेश जारी किया गया है।