मां के कलेजे के टुकड़े को छीन ली एक्सपॉयरी डेट का टीका, जानें, पूरा वाक्या

By : madhukar dubey, Last Updated : December 10, 2022 | 7:54 pm

छत्तीसगढ़। कहते हैं कि मां के कलेजा का टुकड़ा होता है उसका नन्हा सा बच्चा। लेकिन हैरतभरा वाक्या यह है कि एक मां को अपना बेटा इसलिए खोना पड़ गया, क्योंकि उसे एक्सपॉयरी डेट का पीसीवी टीका लगा दिया गया था। वैसे ये घटना कोरबा जिले के रिसडी वार्ड नंबर 13 में हुई। जहां दिलबोध और कांतिबाई के बेटे हर्षित को आंगनबाड़ी में पीसीवी का टीका लगाया गया। इसके बाद वह अपने घर गई, बेटा सोया तो ऐसा सोया की मौत के आगोश में चला गया। फिर क्या था, इस विपदा के बाद तो पूरे परिवार पर दुखो का पहाड़ टूट गया। जिसका शव लेकर माता-पिता कलेक्ट्रोरेट पहुंचे। जहां न्याय की गुहार लगाने लगे। देखते-ही देखते वहां भीड़ जुट गई। उनका आरोप था कि उनके बच्चे को एक्सपॉयरी डेट का टीका लगा दिया गया है। इसकी जांच होनी चाहिए आैर इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। बता दें, कि पिछले दिनों अंबिकापुर में सरकारी अस्पताल में बिजली कट जाने से 4 बच्चों की मौत हो गई थी।

ग्रामीणों ने भी किया कलेक्टोरेट में प्रदर्शन, पुलिस जांच में जुटी

बताते हैं कि टीका लगाने के बाद उसे कुछ ही देर बाद हर्षित को बुखार आ गया। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि वैक्सीन लगने के बाद हल्का बुखार आना नॉर्मल है। लेकिन बच्चे का बुखार बढ़ता चला गया। कहा जा रहा है कि बच्चा रोत को सोया था, फिर अगले दिन सोकर ही नहीं उठा। परिजनों ने देखा तो उसके सांसें नहीं चल रही थीं। इसके बाद परिजन बच्चे के शव को लेकर कलेक्ट्रेट पहुंच गए। इधर ग्रामीणों के कलेक्टर कार्यालय में विरोध करने की सूचना मिलने पर तहसीलदार मुकेश देवांगन, ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर दीपक राज, सीएसपी कोरबा और रामपुर चौकी प्रभारी भी दल-बल के साथ मौके पर पहुंचे। उन्होंने परिजनों को काफी समझाया और जांच के बाद दोषियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया। इसके बाद बच्चे के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया। पुलिस का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही कार्रवाई हो पाएगी।

क्या है पीसीवी टीका, इसे भी जानें

बच्चों के फेफड़ों को किसी भी तरह के संक्रमण से सुरक्षित करने के लिए न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन यानी पीसीवी वैक्सीन लगाई जाती है। ये वैक्सीन बच्चों को निमोनिया से बचाती है। इस वैक्सीन की बच्चों को डेढ़ माह और साढ़े 3 माह की आयु होने पर दो डोज दी जाती है और 9 माह की आयु में बूस्टर डोज दी जाती है। जन्म से लेकर ५ साल तक के बच्चों में निमोनिया का खतरा सबसे अधिक रहता है।