विश्व प्रसिद्ध ‘मां दंतेश्वरी धाम’ पर अद्भूत रस्मों का ‘फागुन मेला’ 26 फरवरी से, जहां आते हैं ‘700’ गांवाें के देवी-देवता
By : madhukar dubey, Last Updated : February 7, 2023 | 9:37 am
इस साल 26 फरवरी से 9 मार्च तक चलेगा, यहां विराजित है मां का धाम
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में फागुन मेला का आगाज हो चुका है। इस साल छत्तीसगढ़ में बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के दरबार में 26 फरवरी से फागुन मड़ई (मेला) शुरू होगा, जो 9 मार्च तक चलेगा। इसके साथ ही इस पर्व में निभाई जाने वाले अद्भुत रस्मों की तैयारी शुरू हो गई है। यहां के पुजारियों का कहना है कि दंतेवाड़ा में शंकनी डंकनी नदियों के संगम स्थल पर विराजित मा दंतेश्वरी देवी का प्रसिद्ध ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्राचीन शक्तिपीठ है। इसी आदिशक्ति की छत्रछाया में फागुन मेला का आयोजन होता है।
कितने दिनों तक चलता है मेला
मेले के साथ ही यहां का जनजीवन मड़ई में बंधकर संगम पर जमा होता है. फागुन मेले की शुरुआत बसंत पंचमी के दिन मंदिर के परिसर में त्रिशूल स्तंभ गाड़कर और माईजी के छत पर आम बौर चढ़ाकर की जाती है। फागुन मास के अंतिम 10 दिनों में आयोजित होने वाले इस मेले में आदिवासी समाज के पारंपरिक देव भक्ति, आदिवासी संस्कृति, लोक नृत्य का यह उत्सव अपने चरम पर होता है।
मेंडका डोबरा मैदान में मां दंतेश्वरी की कलश स्थापना के साथ इस उत्सव का शुभारंभ होता है। इसमें बस्तर संभाग और उड़ीसा के नवरंगपुर जिले के सभी देवी देवताओं को आमंत्रित कर सहभागी बनाया जाता है।
क्या हैं खास रस्में
विश्व प्रसिद्ध फागुन मेले में पहले दिन मड़ई स्थल पर कलश स्थापना की जाती है। इसके बाद दूसरे दिन ताड़ फलंगा धुवानी विधान संपन्न किया जाता है। इसका मतलब यह है कि ताड़ वृक्ष के पत्तों को धोना होता है। ताड़ के इन पत्तों को माता तरई में धोकर होलिका दहन के लिए सुरक्षित रखा जाता है।
इस बीच माईजी की पालकी हर दिन शाम मंदिर से नारायण मंदिर के लिए निकाली जाती है, फिर दोबारा मंदिर वापस लाई जाती है। इसी बीच कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस फागुन मेले के तीसरे दिन खोर कुंदनी और चौथे दिन नाच मांडनी पर मांदर, नगाड़े की थाप पर मंदिर के सेवादार, पुजारी और अन्य लोग मां दंतेश्वरी के सम्मुख नृत्य करते हैं।
आदिम संस्कृति के पीछे यह वजह
आदिम संस्कृति के मेल मिलाप हंसी ठिठोली और उल्लास का वातावरण पूरे उत्सव के दौरान अपने चरम पर रहता है। आखेट नाच के अलावा आंवरामार का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन माई की पालकी पर आंवले का फल चढ़ाया जाता है। मड़ई देखने आए जनसमूह और पुजारी, सेवादार बारह लंकवार आदि दो समूहों में अलग होकर एक दूसरे पर इसी आंवले से प्रहार करते हैं. ऐसी मान्यता है कि आवरामार रस्म के दौरान प्रसाद स्वरूप चढ़े फल की मार यदि किसी के शरीर पर पड़ती है तो सालभर वो निरोगी रहता है।
क्या होता है मेले के आखिरी दिन
इस फागुन मेले के अंतिम चरण में चौथे दिन रंग भंग उत्सव मना कर सभी आमंत्रित देवी देवताओं का पादुका पूजन किया जाता है। गंवरमार के दूसरे दिन मड़ई का उत्सव होता है। इसमें पुजारी द्वारा दोनों हाथों में माईजी के छत्र को थामे हुए कुर्सी से बने पालकी में बैठाया जाता है। साथ ही सारे शहर का भ्रमण कराया जाता है। इसके अलावा चीतलमार नृत्य भी फागुन मेले में काफी चर्चित है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. इसके अलावा डंडार नृत्य और विभिन्न भेष लेकर किए जाने वाले नृत्य भी होते हैं और स्थानीय कलाकृतियां और फूड आइटम्स की दुकानें भी आकर्षण का केंद्र होती है। मेले के 10 वें दिन देवी की सति की याद में होलिका दहन होता है और फिर होली के दूसरे दिन लोग एक दूसरे पर मिट्टी फेंककर एक तरह की होली मनाते हैं और इस त्यौहार का समापन होता है।
तैयारियों के लिए मंदिर कमेटी के साथ विधायक देवती कर्मा व अफसरों की बैठक
छत्तीसगढ़ में बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के दरबार में 26 फरवरी से फागुन मड़ई (मेला) शुरू होगा, जो 9 मार्च तक चलेगा। सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार कलश स्थापना के साथ मड़ई की शुरुआत होगी। परंपरा अनुसार फागुन मड़ई में सैकड़ों क्षेत्रीय देवी-देवता भी शामिल होंगे।
दंतेवाड़ा MLA देवती कर्मा, कलेक्टर विनीत नंदनवार ने टेंपल कमेटी की बैठक ली। जिसमें फागुन मड़ई के आयोजन के लिए रूपरेखा तैयार की गई है। फागुन मेला के पहले दिन सालों से चली आ रही परंपरा अनुसार पहले दिन कलश स्थापना की जाएगी। वहीं देवी की प्रथम पालकी निकाली जाएगी। शक्तिपीठ मां दंतेश्वरी के मंदिर से नारायण मंदिर तक पालकी निकलेगी। फागुन मड़ई में शामिल होने कई क्षेत्रीय देवी-देवताओं को भी आमंत्रित किया गया है। 26 फरवरी से शुरू होने वाली मड़ई 9 मार्च तक क्षेत्रीय देवी देवताओं की विदाई तक चलेगी।
इस दिन होगी ये रस्में
26 फरवरी को कलश स्थापना।
27 फरवरी को ताड़पलंगा धोनी रस्म।
28 फरवरी को खोर खुंदनी।
1 मार्च को नाच मांडनी रस्म।
2 मार्च को लम्हामार रस्म।
3 मार्च को कोडरीमार रस्म।
4 मार्च को चितलमार रस्म।
5 मार्च को गंवरमार रस्म।
6 मार्च को गारी, आंवरामार एवं होलिका दहन।
7 मार्च को रंग भंग एवं पादुका पूजन रस्म।
8 मार्च को मड़ई का आयोजन।
9 मार्च को आमंत्रित देवी-देवताओं की विदाई के साथ ही फागुन मड़ई संपन्न होगी।