छत्तीसगढ़। कहते है कि जिस उम्र में कैरियर में जिंदगी संवारने की होती है और अपने गृहस्थ जीवन में कदम रखकर सांसरिक जीवन में आगे बढ़ने की होती है। उस उम्र में दीक्षा प्राप्त कर अपने ईष्ट को पाने का लक्ष्य तय करना वकाई बहुत बड़ी बात है। अध्यात्म जीवन में भी ऐसे गूढ़ रहस्य हैं, जिन्हें गुरु के मार्गदर्शन में आगे बढ़ा जा सकता है। वैसे पूर्वकाल में ऐसे महान विभूतियां हुईं हैं, जिन्होंने कम उम्र में ही अध्यात्म के पथ चलकर संसार में जीवन को जीने की कला पूरे मानव समाज को सीखा गए।
बहरहाल, छत्तीसगढ़ रायपुर में पहली बार ऐसा हुआ जब 22 साधुओंं में 3 युवकों ने बाल ब्रहमचारी का व्रत कर दीक्षा पा ली। इस ऐतिहासिक पल के जैन धर्म के हजारों लोग साक्षी बने। आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ने खुद ब्रह्मचारी सौरभ (परतबाड़ा), ब्रह्मचारी निखिल(छतरपुर) और ब्रह्मचारी विशाल(भिंड को को जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान की। इस अवसर पर राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर जी भी उपस्थित थे।
जिन्होंने तीनों दिक्षार्थियों का परिचय कराते हुए भव्य जिनेश्वरी दीक्षा की अनुमोदना। इस भव्य जैनेश्वरी दीक्षा को देखने के लिए हजारों की तादाद में भारत के अलग-अलग इलाकों से लोग पहुंचे थे। भव्य जैनेश्वरी मुनि दीक्षा के बाद ब्रह्मचारी सौरभ का नाम १०८ जयन्द्र सागर महाराज, छतरपुर वाले निखिल का नाम १०८ जितेंद्र सागर और विशाल का नाम १०८ जयंत सागर हो गए हैं। अब ये अपनी मेधा और अध्यात्म की शक्ति की अलख मानव समाज में जगाएंगे। ताकि मानव समाज का कल्याण हो सके।