छत्तीसगढ़। आरक्षण बिल (reservation bill) पर राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर करने के बजाए सरकार से 10 सवाल पूछ लिए हैं। इसके चलते एक बार फिर कांग्रेस और बीजेपी में सियासी पारा सातवें आसमान में पहुंच गया है। इधर, राज्यपाल के इस सवालों को लेकर कांग्रेस ने राज्यपाल और BJP को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
कांग्रेस ने कहा कि अगर विधेयक पर उन्हें आपत्ति है तो उसे लौटाकर ही सवाले पूछे होते, जो बीजेपी के नेता बोल रहे है, उसी अंदाज में राज्यपाल भी उनके सुर में सुर मिला रहीं हैं। कांग्रेस ने कहा है कि विधेयकों को लौटाए बिना राज्यपाल का सरकार से १० सवाल पूछना उचित नहीं है। जिस पर भाजपा का कहना है कि यह स्थिति कांग्रेस और उसके सहयोगियों की वजह से ही बनी है। वैसे इस राज्यापाल की आपत्ति के बाद (reservation bill) आरक्षण बिल को लेकर कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने आ गई है।
कांग्रेस की दलील है, जो १० सवाल राज्यपाल ने सरकार से पूछे थे, उसे विधेयक के साथ भेजना था। नियमत: राजभवन उस विधेयक में न एक शब्द जोड़ सकता है और न एक शब्द भी कम कर सकता है। ऐसे में जो भी संशोधन करना है वह विधानसभा को करना है। अगर वह विधेयक राज्य सरकार के पास आता तो वह उनकी शंकाओं का निराकरण करती। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक दिन पूर्व जो बयान दिया था, उसका निहितार्थ था, आरक्षण एक वर्ग के लिए नहीं, बल्कि समाज के सब वर्गों के लिए विधेयक लाया जाता है। उन्हें दूसरों को आरक्षण मिलने पर क्यों आपत्ति हो रही है। बीजेपी इसलिए तिलमिलाई है, क्योंकि विधेयक लाकर उनके मुद्दे को कांग्रेस ने खत्म कर दिया। अब उनके पास कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया है।
शुक्ला ने कहा, जो १० सवाल किये गये हैं, उसमें सीधे-सीधे राजनीति झलक रही है। भाजपा नेता जिस तरह के बयान दे रहे हैं राजभवन उसी तरह के सवाल सरकार से कर रहा है, जो उचित नहीं है। (reservation bill) आरक्षण संशोधन विधेयक सर्व समाज के हितों के लिए बनाया गया है।
इधर भाजपा विधायक दल के पूर्व नेता धरमलाल कौशिक का कहना है, भाजपा को दबाव बनाने की जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री की वजह से ही लोगों का आरक्षण छीना गया है। जब भाजपा की सरकार थी तो ३२ प्रतिशत आरक्षण हम लोगों ने पारित किया था। उसका लाभ भी मिल रहा था। मुख्यमंत्री के सहयोगी लोग ही उसके खिलाफ कोर्ट गये। जब कोर्ट से आरक्षण निरस्त हो गया तो उन सहयोगियों को सम्मानित करने का काम भी हुआ।
प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा, न्यायालय का फैसला आने के बाद भाजपा ने आरक्षण बहाली को लेकर राजभवन तक पैदल मार्च किया। अब जब (reservation bill) आरक्षण विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं होने के चलते बहाली नहीं हो पा रही है तो भाजपा के वही नेता राजभवन जाने से क्यों डर रहे हैं। आखिर भाजपा नेताओं को आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर होने से डर क्यों लग रहा है। ठाकुर ने सवाल उठाया कि क्या भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के भाजपा नेताओं को इस आरक्षण विधेयक के खिलाफ खड़ा होने का फरमान जारी किया है?
सूत्रों के मुताबिक राजभवन ने पूछा है कि क्या इस विधेयक (reservation bill) को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण। १९९२ में आये इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। उस विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों से संबंधित विवरण क्या है। उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उनको देखने के बाद न्यायालय का कहना था, ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं किया गया है जिससे आरक्षण की सीमा को ५० प्रतिशत से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक की जा रही है। राजभवन ने यह भी पूछा है कि सरकार यह भी बताये कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार से समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं। इस तरह कुल 10 सवाल पूछे गए हैं।