कर्नाटक जनादेश लोकसभा-2024 का प्रतिबिंब! पढ़ें, ‘कोको पाढ़ी’ के विचार

By : madhukar dubey, Last Updated : May 14, 2023 | 2:03 pm

छत्तीसगढ़। दक्षिण भारत का द्वार कहे जाने वाला राज्य कर्नाटक में कांग्रेस (Congress) का दस्तक न केवल कर्नाटक में बल्कि पूरे देश में स्पष्ट संदेश दे गया है कि मोदी की लोकप्रियता अब कम हो गई है। जिस चेहरे के दम पर बीजेपी के नेता राज्यों में जीत का दंभ भरते थे। कर्नाटक (Karnataka) के नतीजे ने उनका भ्रम भी दूर कर दिया है। मेरा मानना है, कांग्रेस के नेता एकजुट हो कर मुकाबला करें तो कोई मुश्किल नहीं कि बीजेपी को न हराया जा सके और वह भी कांग्रेस पार्टी स्वयं के दम पर अकेला सक्षम है की बीजेपी को हर मोर्चे पर शिकस्त दे सकती है। इतना ही नहीं इस नतीजे ने यह भी बता दिया है कि अगले साल लोकसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी खेमे का नेतृत्व सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है और यह कांग्रेस के सर्वमान्य नेता राहुल गांधी के अगुवाई में ही सम्भव है।

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का खाका तो 19 अप्रैल को ही खींच लिया गया था,जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि कर्नाटक के कांग्रेस नेता इस बात की फिक्र न करें कि 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद कौन मुख्यमंत्री बनेगा। ये चिंता करने के बजाय उन्हें अपना ध्यान हर हाल में 150-160 सीटें जीतने पर लगाना चाहिए।

कांग्रेस अध्यक्ष का कड़ा संदेश देने वाला ये भाषण, कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दो उम्मीदवारों,प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मौजूदगी में पूरे कर्नाटक के कांग्रेसियों के लिए अनुशासन का यह स्पष्ट संदेश था और उस वक़्त मंच पर राहुल गांधी की मौजूदगी भी इसे स्वीकृति प्रदान कर रही थी और आज वही आंकड़ा इसके आस-पास है।

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के पीछे यह भी महत्वपूर्ण है कि पारंपरिक रूप से बीजेपी को वोट करने वाले लिंगायतों ने भी कांग्रेस को वोट किया है।इसलिए कि प्रदेश के स्थानीय नेताओं को ख़ारिज कर कोई भी पार्टी लंबे समय तक चुनाव नहीं जीत सकती है।बीजेपी ने अन्य प्रांतों की तरह यहां भी मोदी को चेहरा बनाया।मोदी ने चुनावी कैंपेन के आख़िर में तो बजरंगबली के नाम पर वोट मांगना शुरू कर दिया जो कर्नाटक के लोगों को रास नहीं आई और बीजेपी को अपमानजनक हार मिली। जबकि कांग्रेस के विज्ञापनों में स्थानीय नेता डीके शिवकुमार के साथ सिद्धरमैया बिल्कुल सामने पर थे और कांग्रेस पार्टी राज्य से जुड़े स्थानीय मुद्दों को ही अंतिम समय तक प्रचारित करते रही।इसमें भ्रष्टाचार का मुद्दा ज़ोर शोर से उठाया गया।राज्य सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को निशाना बनाते हुए ‘40% की सरकार’ का अभियान कारगर साबित हुआ।इसके अलावे पांच वायदे किए गए जिनमें पुरानी पेंशन बहाल करने, 200 यूनिट तक बिजली फ़्री देने, 10 किलो अनाज मुफ़्त देने, बेरोजग़ारी भत्ता देने और परिवार चलाने वाली महिला मुखिया को आर्थिक मदद की बात कही गई।जिसे कर्नाटक की जनता ने स्वीकार कर कांग्रेस पर विश्वास जताया।

कर्नाटक में कांग्रेस की बम्फर जीत के मायने यह भी है कि अब देश की जनता इस बात को भलीभांति जान चुकी है कि बीजेपी पराजय की स्थिति में सत्ता हथियाने ‘ऑपरेशन कमल’ का प्रयोग करती है,ऐसे में इस अभियान को तभी रोका जा सकता है जब जीत का अंतर काफी ज्यादा हो और कर्नाटक में यही हुआ।इसके मायने यह भी है कि इस जनादेश के जरिए कांग्रेस अब 2024 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की कथित लोकप्रियता का मुक़ाबला पूरे दमखम के साथ करने तैयार है।कर्नाटक में अब तक केवल तीन मुख्यमंत्री ही पाँच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए हैं और ये तीनों मुख्यमंत्री कांग्रेस के रहे हैं। एस निजलिंगप्पा (1962-1968), डी देवराजा उर्स (1972-1977) और सिद्धारमैया (2013-2018)।ऐसे में कर्नाटक के जनता की मनः स्थिति यह भी रही कि उन्हें राज्य की उन्नति के लिए पूर्णकालिक मुख्यमंत्री की जरूरत है और यह सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही दे सकती है।

देश में विपक्षी एकता की बात बार-बार होती है लेकिन बीजेपी के नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा कौन होगा को लेकर हमेशा संशय बना रहता है,ऐसे में मेरा मानना है कि कांग्रेस का विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने का दावा इस जीत से और भी मज़बूत हुआ है। क्योंकि ये जीत एक बड़े राज्य में और बड़े अंतर से हुई है। साथ ही यह जीत इस बात को भी प्रमाणित करता है कि राहुल गांधी ही एक मात्र नेता हैं जो विपक्ष का चेहरा बन सकते हैं।राज्यों में विपक्षी दल तो पहले से ही एकजुट हैं।परंतु कर्नाटक की यह जीत अब राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का गठबंधन बनाने निर्विवाद रूप से कांग्रेस के नेतृत्व में अब एकजुट होने परहेज नहीं करेगी।मेरा अभिमत यह भी है कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व कर्नाटक में जिस तरह से स्थानीय नेताओं पर भरोसा किया और सामाजिक न्याय के मुद्दों को अपने एजेंडे में शामिल किया,निश्चित रूप से इससे पार्टी का प्रबंधन और भी बेहतर हुआ और इसका बहुत बड़ा श्रेय फ़रवरी माह में छत्तीसढ़ में हुए अधिवेशन को जाता है, इस अधिवेशन में जो एजेंडा पार्टी ने बनाया था उसे अब लागू किया जा रहा है।

(लेखक पूर्णचन्द्र कोको पाढ़ी हैं,जो राष्ट्रीय युवा कांग्रेस के महासचिव हैं)

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