रायपुर। Rashtriya Swayamsevak Sangh Dr. Mohan Bhagwat राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूजनीय सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने सोमवार को सामाजिक समरसता को राष्ट्रीय चरित्र का मूलभूत तत्व बताया है. उन्होंने सामाजिक समसरता गतिविधि (social harmony activity) से जुड़े कार्यों पर स्वयंसेवकों व अधिकारियों से चर्चा कर उनका मार्गदर्शन किया.इस अवसर पर डॉ मोहन भागवत ने कहा कि भारत में प्रत्येक गांव, तहसील व जिले में सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने वाली सज्जन शक्ति रहती है. उन्होंने हमेशा जाति, पंथ से ऊपर राष्ट्रीय हितों को रखा. यही वजह है कि 140 करोड़ भारतीय किसी भी धर्म, जाति, पंथ से क्यों न आते हों वह अपने राष्ट्रीय चरित्र को नहीं भूलते.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार सामाजिक समरसता की दिशा में कार्य कर रहा है. बता दें सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत 27 दिसंबर से छत्तीसगढ़ प्रवास पर है.
देश में भाषा, वेशभूषा, पूजा पद्धति, उपासना के अलग-अलग आचरण करने वाले पंथ, जाति को भारतीयता की डोर एक सूत्र में पिरोये रखती है. आज राष्ट्रीय चरित्र की स्थापना के लिए सामाजिक समरसता की जड़ों को मजबूत करना होगा. उन्होंने कहा, मंदिर, जलाशय, शमशान आदि पर सभी जाति, पंथ, वर्गों का समान अधिकार है. यह कोई आज से है, ऐसा नहीं है. यह भारत का शाश्वत आचरण है.
भारतीय जीवन मूल्यों में सामाजिक समरसता के दर्शन होते हैं, आज आवश्यकता इस बात की है कि हम ऐसे ऋषि मुनियों, सन्त व हुतात्माओं के चिंतन व दर्शन को आत्मसात करें. उन्होंने कहा, समाज में नकारात्मक शक्तियां प्रत्येक कालखण्ड में हुई हैं किंतु समाज ने अपनी एकता, अखण्डता से हमेशा समाज के अनुकूल व्यवस्था का निर्माण किया. उन्होंने पूज्य गुरुघासीदास का उल्लेख करते हुए कहा, आज उनके विचार वर्तमान व आने वाली पीढ़ियों का दिग्दर्शन करते रहेंगे। गुरु घासीदास ने मानव मात्र ही नहीं जीव जंतुओं व प्रकृति के साथ मानवता पूर्ण व्यवहार का संदेश दिया.
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