‘राजभवन’ की चौखट पर ‘सर्व आदिवासी’ समाज, बिल के 10 सवालों के जवाब सौंपे

आखिरकार एक सर्व आदिवासी सोहन पोटाई गुट (sarv aadivaasee sohan potaee gut) के प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिला। जहां उन्होंने आरक्षण विधेयक पर चर्चा हुई।

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  • Updated On - January 20, 2023 / 08:49 PM IST

छत्तीसगढ़। आखिरकार एक सर्व आदिवासी सोहन पोटाई गुट (sarv aadivaasee sohan potaee gut) के प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिला। जहां उन्होंने आरक्षण विधेयक पर चर्चा हुई। इस मौके पर प्रतिनिधिमंडल ने एक ज्ञापन सौंपकर राज्यपाल (Governor) के 10 में 8 सवालों का जवाब भी दिया। इसके साथ ही अब आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर करने की मांग की। उनकी दलील है कि विधानसभा में सर्व सम्मति से पारित विधेयकों पर राजभवन की आपत्ति एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल है। इन विधेयकों की समीक्षा का अधिकार केवल उच्च और उच्चतम न्यायालय को ही है।

सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष भारत सिंह की अगुवाई में प्रतिनिधिमंडल मिला। जहां उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश से अलग कर अलग छत्तीसगढ़ के गठन का आधार ही इस क्षेत्र का पिछड़ापन और आदिवासियों के हितों की बात थी। केंद्र सरकार ने २००५ में आरक्षण नीति बनाई।

जिसके आधार पर अनुसूचित जातियों और जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देना था। लेकिन पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने २०११ तक उनको इसका लाभ नहीं दिया। २०१२ तक ११-१२ प्रतिशत आबादी वाले अनुसूचित जाति को १६ प्रतिशत आरक्षण दिया जाता रहा। जबकि ३२ प्रतिशतकी आबादी वाले आदिवासी समाज को केवल २० प्रतिशत आरक्षण मिला।

२०१२ में इसे दूर किया गया। जिसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया। अब विधानसभा ने नये विधेयक पारित किया है तो वह राजभवन में अटक गया है। इसकी वजह से आदिवासी समाज का व्यापक हित प्रभावित हो रहा है। आदिवासी समाज ने अपने ज्ञापन में राज्यपाल के विधिक सलाहकार पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विरोधी मानसिकता का होने का आरोप लगाया है।

ज्ञापन में राजभवन के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा गया है, संवैधानिक व्यवस्था के तहत कार्यपालिका शासनतंत्र का संचालन करती है। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई है, जिससे सरकार का काम एक दिन भी प्रभावित न हो।

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद बनी परिस्थिति में राज्य सरकार से यह पूछा जाना कि उच्च न्यायालय के निर्णय के ढाई महीने बाद ऐसी विशेष परिस्थितियों के संबंध में कोई डाटा इकट्‌ठा किया गया है-एक्स्ट्रा जूडिशियल है। यह आपत्ति प्रदेश के राजनीतिक दलों के तर्क और विवेक पर प्रश्नचिन्ह लगाता है जो उन्होंने विधेयकों को पारित करते समय विधानसभा में रखे थे। ये विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुए हैं, ऐसे में इनकी विवेचना का अधिकार केवल उच्च और उच्चतम न्यायालय को ही है।

सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधिमंडल में बी.एल. ठाकुर, भारत सिंह, बी. पी. एस. नेताम, आर. बी. सिंह, हीरालाल नायक, पी.आर.नायक, नरसिंह ठाकुर, एम. आर. ठाकुर, विक्रम लकड़ा, आनंद प्रकाश टोप्पो, डॉ. शंकरलाल उइके, जे. मिंज, मोहित ध्रुव, कल्याण सिंह बरिहा, गणेश ध्रुव, मनोहर ठाकुर, मदन लाल कोरपे, वेदवती मंडावी, वंदना उइके, कमलादेवी नेताम और सनमान सिंह शामिल थे।