रायपुर। रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव(Raipur South Assembly by-election) में जीत पक्की करने के लिए कांग्रेस और बीजेपी में दांवपेंच का दौर शुरू हो चुका है। एक तरफ जहां जनसंपर्क के जरिए लोगों को साधने की कोशिश कांग्रेस और बीजेपी(Congress and BJP) के प्रत्याशी कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा और कांग्रेस में अंदरूनी रणनीति भी बनी है। इसके तहत दोनों पार्टियों के बड़े नेता दक्षिण के जनाधार वाले स्थानीय नेता यानी पार्टियों के वर्तमान और पूर्व पार्षदों के सम्पर्क में हैं। उनकी टोली को लेकर वार्ड के मानिंद और सम्मानितजनों को अपने पाले में करने में जुटे हैं। ये लड़ाई भले ही सतही तौर न दिखे लेकिन गुप्त रूप से छिप-छिपाकर अपने-अपने मिशन में दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ता लगे हुए हैं।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यही वह कड़ी होगी, जो कांग्रेस और बीजेपी के हार-जीत के अंतर को तय करेगी। इस गुप्त जनसंपर्क में कांग्रेस और बीजेपी अपने-अपने हिसाब से कई वर्गों और सामाजिक संगठनों को साध रहे हैं। इसमें खास यह है कि ब्राह्मण प्रत्याशी के नाम पर ब्राह्मणों को एक मंच लाने की कोशिश में कांग्रेस जुटी है। कांग्रेस और भाजपा ने टिकट के दावेदारों को प्रचारक की भूमिका में उतार कर उन्हें सम्मान देने का काम किया है। लिहाजा, इस रणनीति का लाभ दोनों ही पार्टियों को मिलने वाला है। कांग्रेस जहां किसी भी तरह से इस सीट पर जीत हासिल करना चाह रही है। वहीं दूसरी ओर भाजपा अपने जीत के प्रति आश्वस्त नजर आ रही है। लेकिन उसका दावा है कि इस बार बृजमोहन अग्रवाल के जीत के मार्जिन को बढ़ाकर रिकार्ड कायम करेंगे। वहीं अगर देखा जाए तो भाजपा दो के दम यानी पूरा चुनाव बृजमोहन और सोनी के संयुक्त सियासी ताकत के साथ लड़ रही है।
जबकि कांग्रेस ने आकाश शर्मा के साथ पार्टी के सभी कद्दावर नेताओं की ताकत है। वैसे मुकाबला या तो एकतरफा होगा या रोमांचक। लेकिन रायपुर दक्षिण विधानसभा के वोटर बहुत ही शांत हैं, ये दीगर है कि जो भी प्रत्याशी वोटरों से मिल रहा है, उसे मिलने का आश्वासन मिल रहा है। लेकिन मतदाता किसे अपना भरपूर समर्थन दे रहे हैं, उसका पैरामीटर तो मतगणना के दिन 23 नवंबर को ही पता चल पाएगा।
टोली के अलावा यानी सीधे घर-घर जनसंपर्क के फार्मूले के अलावा कांग्रेस और बीजेपी ने ऑनलाइन और सोशल मीडिया के जरिए वोटरों से संपर्क करने में जुटी है। इसमें मोबाइल के वाट्सअप ग्रुप के माध्यम से भी अपने-अपने प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बानने में कार्यकर्ता जुटे हैं। इसमें सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म भी हैं। इसमें एक-दूसरे के कार्यकाल को लेकर तरह-तरह के आकड़े भी पेश किए जा रहे हैं। साथ ही पार्टियां एक-दूसरे पर वार-पलटवार करती भी दिख रही हैं।
इसके अलावा कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो कार्यकर्ता तो नहीं है लेकिन कांग्रेस और बीजेपी की विचारधारा से जुड़े हैं, वे भी स्वफूर्त अपनी-अपनी पार्टियों को समर्थन देने की अपील कर रहे हैं। मिलाजुलाकर देखा जाए इस चुनावी लड़ाई में प्रत्यक्ष दिखने वाले पार्टी के कार्यकर्ता तो दूसरी ओर पार्टियों की विचारधारा वाले लोग भी शामिल हैं। इनके द्वारा बात को समझाने के तरीके भी जुदा है, क्योंकि ये कहीं भी किसी मुद्दे के बहाने माहौल देखकर एक बहस या शिगूफा छोड़ते हैं। फिर क्या तुलनात्मक तथ्यों के साथ अपनी-अपनी पार्टी को हाई रेटिंग देकर जोडऩे की कोशिश करते हैं।
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