छत्तीसगढ़। 76 प्रतिशत (Reservation) आरक्षण बिल भले ही राजभवन में अटका है। लेकिन इधर, अब सर्व आदिवासी समाज ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम (Union Minister Arvind Netam) के नेतृत्व में भूपेश सरकार द्वारा पारित कराए गए बिल के विरोध में मोर्चा खोल दिया है। उनकी मांग है, उनके लिए अलग से 32 प्रतिशत आरक्षण बिल पारित किया जाए। क्योंकि उन्हें अंदेशा है कि जो 76 प्रतिशत आरक्षण बिल लाया गया है। उसमें कानूनी अड़चन आ सकती है। कारण भी बताया कि जहां ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की याचिका हाईकोर्ट में लंबित है। वहीं सुप्रीम कोर्ट में भी 58 प्रतिशत आरक्षण पर सुनवाई चल रही है।
उनका तर्क है कि ऐसे हालात में उनके लिए पृथक से 32 प्रतिशत आरक्षण बिल विधानसभा में लाया जाए। अगर शीघ्र पृथक से आरक्षण बिल के लिए इनके विधायक व मंत्री पृथक से बिल नहीं लाते हैं तो इनके खिलाफ सर्व आदिवासी समाज उग्र आंदोलन करने को बाध्य होगा। इस मांगों के बीच आदिवासी समाज ने पूरी तरह से राज्यपाल का पक्ष लिया है। उनका कहना है कि उनकी जो सोच है, वह हमारी मांगों के अनुरूप है। इसके बावजूद उन पर प्रदेश सरकार स्तरहीन और अवैधानिक टिप्पणियां की जा रही है।
आज बूढ़ातालाब धरना स्थल पर बड़ी संख्या में सर्वआदिवासी समाज के बैनरतले आदिवासी जुटे। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरिवंद नेताम ने प्रेस नोट जारी करते हुए कहा कि पृथक आरक्षण को लेकर हम लोग तब तक आंदोलन करते रहेंगे, जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जाएंगी। यह जाहिर है कि भूपेश सरकार के सामने अब इनको मनाने की चुनौतियां भी हैं। जबकि राज्यपाल ने आरक्षण बिल पर साइन ही नहीं किए हैं। जिसे लेकर राजभवन और भूपेश में तनातनी भी चल रही है।
आरक्षण बिल को लेकर राज्यपाल ने जो 10 सवाल सरकार को भेजे थे, उसके जवाब भी सरकार ने दे दिए हैं। इसके वाबजूद राज्यपाल अब विधिक सलाहकार से राय लेकर ही साइन करने की बात कर रहीं हैं। जिस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था, कि क्या विधानसभा से बड़ा उनका विधिक सलाहकार हो गया है। जब बिल पारित हो गया है तो उस पर साइन करना चाहिए।
बहरहाल, आदिवासियों की मांग है कि उनके लिए पृथक से 32 प्रतिशत आरक्षण बिल लाया जाए। कुल मिलाकर राजभवन और सरकार के बीच आरक्षण को लेकर खींचतान मची हुई है। इन सबके बीच आरक्षण के मुद्दे पर आदिवासी अभी शांत नहीं बैठने वाले। ऐसे में जाहिर है कि प्रदेश सरकार की दुश्वारियां बढ़ेगी।
कांग्रेस का आरोप है कि राजभवन BJP के इशारे पर ही काम कर रहा है। यही कारण है कि अभी तक आरक्षण बिल पर हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं। कांग्रेस का कहना है कि इस मुद्दे को BJP किसी भी तरह विवाद के हालात पैदा कर, इसे बनाये रखना चाहती है। जबकि विधानसभा में आरक्षण बिल में आदिवासी ही नहीं सभी वर्गों के लिए व्यवस्था की गई है।
सर्व आदिवासी समाज ने भानुप्रतापपुर विधानसभा के उपचुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े किए थे। इस चुनाव में इनका उम्मीदवार तीसरे नंबर पर था। हां, इतना जरूर रहा कि कांग्रेस के जीत का अंतर पिछले चुनाव से कम हो गया। अगर पृथक से आरक्षण बिल नहीं लाया गया तो अगले साल विधानसभा चुनाव में भी आदिवासी समाज अपने प्रत्याशी उतारेगा। ऐसे में BJP का कम तो कांग्रेस का अधिक नुकसान होने की संभावना बनेगी।