फारूक अब्दुल्ला को शिव और दोस्ती रायपुर खींच लाई, जानें, पूरी कहानी

By : madhukar dubey, Last Updated : December 23, 2022 | 4:13 pm

रायपुर। दोस्त एक शब्द नहीं, बल्कि एक रूहानी संबंध का ताल्लुक होता है। एक ऐसी ही कहानी रायपुर के शिव और कश्मीर के शफी की है। इन दोनों की दोस्ती से पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला इतने प्रभावित हुए, की रायपुर के शिव के बुलावे पर मिलने चले आए।

‘शिव-शफी सिर्फ दो नाम नहीं, ये मुल्क का असली चेहरा’

शिव और शफ़ी की दोस्ती की कहानी से प्रभावित होकर ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला रायपुर पहुंचे थे। यहां आने के बाद उन्होंने मीडिया से खास की। वो जिस सोच के साथ यहां आए हैं, वो उन्हीं के शब्दों में।

सुनिए, फारूक अब्दुल्ला की जुबानी

“ मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसे भी कभी रायपुर आऊंगा, लेकिन मेरे ज़ेहन ने मेरे दिल में कभी इतनी दस्तक नहीं दी, जितनी इस बार, कि तुम्हें रायपुर जाना ही है। दरअसल, शिव और शफ़ी सिर्फ दो नाम नहीं हैं। ये इस मुल्क का असली चेहरा है। दरअसल, यही मुल्क है। ये दोस्ती ही तरक्की का रास्ता है। आज जो माहौल है, उसमें हज़ारों शिव और शफ़ी की ज़रूरत है। इस मोहब्बत ने मुझे इतना हैरान किया, दिल को इतना छुआ कि मैंने ठान लिया था, संसद सत्र छोड़कर भी मैं रायपुर जाऊंगा। आपके अखबार का मैं शुक्रिया अदा करता हूं, जो कड़वाहट नहीं भर रहा, बल्कि मीठी सी दोस्ती से लोगों के दिलों को छूने और जोड़ने का काम कर रहा है।

बोले, मोहब्बत का पैगाम से सभी प्रभावित हैं

सच्चाई है, कि आज हालात बहुत अलग हैं। कश्मीर में लोग मर रहे हैं, वो चाहे हिन्दू हों या मुसलमान हों। इससे किसी को क्या मिलेगा। सरहद के उस पार के लोगों को भी सोचना होगा। ये दोस्ती खोजनी होगी। कहीं न कहीं, वहां कोई शफ़ी होगा, कहीं न कहीं यहां कोई शिव होगा। कल जब मैंने अपने बेटे उमर को बताया कि मैं रायपुर जा रहा हूं, तो वो भी चौंक गया। पूछा- “आप रायपुर क्यों जा रहे हो?” मैंने कहा-“मोहब्बत का पैगाम देने का एक मौका मिला है। मैं इसे गंवाना नहीं चाहता। अगर मैं चूक गया तो एक बड़ा मौका मेरे हाथ से निकल जाएगा कि मैंने अपना फर्ज़ नहीं निभाया। मैंने बेटे को इन दोनों की कहानी बताई, तो उसने कहा, आपको जाना ही चाहिए।”