रायपुर। अब नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के मैदान-ए-जंग में चक्रव्यूह की रचना बीजेपी और कांग्रेस (BJP and Congress) में शुरू हो गई है। संगठन स्तर पर भले ही रणनीतिकार अभी खाका खींचने में मशगूल हों। लेकिन दोनों पार्टियों के दावेदार अभी से सक्रिय हो गए हैं। चुनाव नजदीक आने से जहां वर्तमान दोनों पार्टियों के पार्षदों ने अपनी जनता के बीच सक्रियता सामान्य दिनों की अपेक्षा बढ़ा दी है। मानसूनी सीजन में वे अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बीजेपी और कांग्रेस पार्टी के वार्डों के जमीनी कार्यकर्ता भी नगरीय निकाय के चुनाव (Municipal body elections) में किस्मत आजमाने की तैयारी में जुट गए हैं। ऐसे में पार्षद के चुनाव लड़ने की दावेदारी भले ही पार्टी के अंदर अभी नहीं ठोंक रहे हैं। लेकिन अपने-अपने वार्ड में खुद के पार्षद चुनाव लड़ने की दावेदारी जनता के बीच प्रचारित करने में जुटे हैं।
इसके पीछे कारण है कि इस बार भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर होगी, क्योंकि रायपुर सहित कई नगरीय निकायाें में कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा के कम पार्षद हैं। ऐसे में संभावना है कि भाजपा और कांग्रेस पार्षद के टिकट वितरण में फार्मूला बदलेगी। इसकी चर्चा दोनों पार्टियों में है।
भाजपा टिकट वितरण में इस बार वार्डों के परिसीमन के बाद जातीय संतुलन को भी ध्यान रखेगी। वैसे देखा जाए तो भाजपा इस बार नगरीय निकाय के चुनाव में मजबूती से चुनाव लड़ेगी। क्योंकि कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार के दौरान मेयर और नगर पंचायत अध्यक्षों के चुनाव के नियम को बदलकर जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव न कराकर पार्षदों के माध्यम से कर दिया था। इसके चलते भाजपा के पास कांग्रेसी पार्षदों को घेरने के लिए ज्यादा मौके हैं। भाजपा कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार में वार्डों की मूलभूत सुविधाओं को सुधारे नहीं जाने और काम नहीं होने का मुद्दा बनाएगी। बतौर उदाहरण के तौर जैसे भाजपा रायपुर मेयर के कामकाज में वार्डों में मूलभूत सुविधाओं के विस्तार नहीं होने और विकास कार्यों में घोटालों का आरोप विधानसभा चुनाव के दौरान से ही लगाती आ रही है। नगरीय निकाय के चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप की लड़ाई और तेज हो जाएगी।
अब इन हालातों को कौन सी पार्टी इसे भुना पाती है, ये तो आने वाला समय ही बताएगा। हां, इतना जरूर है कि बीजेपी और कांग्रेस में कुछ ऐसे पार्षद हैं जिनकी छवि अपने-अपने वार्ड में बेहतर है। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक लगभग 75 से 80 फीसदी पार्षदों को लेकर वार्ड में असंतोष है, हो सकता है कि इस अनुमान को ग्राफ कुछ भले ही कम हो। लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस के पार्षद और नगरीय निकायों के अध्यक्ष और मेयर के सामने बड़ी चुनौती है। इतना तय है कि जिस तरीके से भाजपा अपने सियासी प्रयोग के जरिए विधानसभा और लोकसभा में सफलता हासिल की है, उससे लगता है कि भाजपा कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार की तर्ज पर 90 फीसदी नगरीय निकायों की सीट पर काबिज हो सकती है। चर्चा है कि भाजपा की तैयारी है कि नगरीय और पंचायत चुनाव में पूरी तरह से क्लीन स्वीप करना। जिसमें वह सफल भी हो जाए तो काेई आश्चर्य नहीं होगा। क्याेंकि जनता कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार के दौरान वार्डों के विकास के रिपोर्ट कार्ड के आधार पर वोट करने के मूड में है।
इस बार टिकट वितरण का फार्मूला बदलने की तैयारी में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां हैं। इस बार दोनों ही पार्टियां युवा चेहरे को तरजीह देने की तैयारी में हैं। देखा जाए तो यही वजह है कि भाजपा में युवा कार्यकर्ता ज्यादा सक्रिय नजर आ रहे हैं। यही वजह भी है कि ये युवा कार्यकर्ता वरिष्ठ नेताओं के यहां अपनी दावेदारी अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्त कर रहे हैं। साथ ही अपने वार्ड में जनता के बीच सक्रिय हैं। दीवार पर पेटिंग कराने की तैयारी है, लेकिन वो वार्ड परिसीमन क्लीयर होने का इंतजार कर रहे हैं।
नगरीय निकाय के चुनाव में पार्षद और महापौर के लिए नेता अपनी दावेदारी जता रहे हैं। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के लिए सभी को संतुष्ट कर पाना भी एक चुनौती होगी। सभी को एकजूट होकर चुनावी में कार्यकार्ताओं को उतारने की दोनों पार्टियों की ओर से प्रयास होगा।
कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार के दौरान नगरीय निकाय के चुनाव में महापौर और पंचायत अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया को लेकर नियम में बदलाव किए गए थे। ऐसे में हो सकता है कि भाजपा सरकार इसे पलट दे। अगर ऐसा नहीं भी हुआ तो भाजपा पहले सर्वे कराकर ही कोई निर्णय ले सकती है। इन सबके बावजूद भाजपा के निशाने पर नगरीय निकाय की वो सीटें हैं, जिन पर कांग्रेस का कब्जा है उसे जीतकर एक मजबूत संदेश देना। क्योंकि चर्चा यह भी है कि इस बार भाजपा अपने संगठन के पदाधिकारी और विधायकों के लिए भी नगरीय चुनाव को जीतने का टारगेट देगी। पिछली बार 2018 में 10 नगर निगम सहित अन्य नगर पालिका परिषद, पंचायत के चुनाव में सभी पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। जिसे पलटने के लिए भाजपा इस कोई कसर नहीं छोड़ेगी, ऐसे में नए और युवा चेहरों को मौका देने की संभावना जताई जा रही है।
यह भी पढ़ें : महापौर जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे ढेबर को अपने इस राजनीतिक आचरण पर शर्म महसूस करनी चाहिए – संजय श्रीवास्तव