राजनांदगांव । (Naxalites attacked Mohla-Manpur) अविभाजित राजनांदगांव में सन् 1992 में पहली नक्सल घटना बकरकट्टा में हुई थी। इसके बाद पिछले 35 सालों में नक्सलियों ने मोहला-मानपुर से लेकर कवर्धा जिले तक रेड कारीडोर तक तैयार कर लिया था। 2015 में कवर्धा जिले में नक्सलियों ने अपनी उपस्थिति का अहसास कराया था। इन का अहसास कराया था। इन सालों में नक्सलियों ने न केवल ग्रामीणों की हत्या की, बल्कि सैकड़ों जवान शहीद भी हुए। अब केंद्र के साथ विष्णुदेव सरकार की आक्रामक रणनीति और लगातार चलाए जा रहे आपरेशन के चलते नक्सली पिछले कुछ सालों से बैकफुट पर आ गए थे।
यही कारण है कि, पिछले कुछ सालों में जिले में नक्सलियों ने कोई बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया। फोर्स के लगातार बढ़ते दबाव के चलते अब राजनांदगांव, खैरागढ़-छुईखदान गंडई और कवर्धा जिले को केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित जिले से हटा दिया है। वहीं हाई नक्सल इलाके की श्रेणी में शामिल रहे मोहला-मानपुर- चौकी जिले को एलडब्लूई की श्रेणी में रख दिया गया है। गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ में बस्तर के सिर्फ चार जिलों को भी अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रखा है। नक्सल मुक्त होने के साथ ही केंद्र सरकार ने इन जिलों में विकास कामों में तेजी लाने के निर्देश भी जारी किए हैं।
अविभाजित राजनांदगांव जिले में नक्सलियों के खिलाफ जंग लड़ने के लिए केंद्र सरकार ने आईटीबीपी की चार बटालियन की तैनाती यहां की है। नक्सल प्रभावित इलाकों में कैंप खोलकर वहां विकास काम तेजी के साथ पूरे कराए जा रहे हैं। नक्सल मुक्त की श्रेणी में आने के बाद इन जिलों में तैनात फोर्स को भी बस्तर भेजे जाने की चर्चा है। दो कंपनियों को यहां से रवाना भी कर दिया है।
केंद्र सरकार द्वारा नक्सल जिलों में विकास कामों के लिए हर साल 30 करोड़ रुपए की राशि जारी की जाती थी। नक्सल मुक्त होने के बाद इन तीनों जिलों को अब यह राशि जारी नहीं होगी। वहीं मोहला-मानपुर- चौकी जिले में एलडब्लूई के तहत करीब 10 करोड़ रुपए ही जारी होंगे।
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