‘तोर नहीं, मोर सॉय’, मचे हे ‘BJP-कांग्रेस’ में झपट्टा!

चुनावी साल और ऐसे में छत्तीसगढ़ की राजनीति में शह-मात का खेल जारी है। अब जोड़ तोड़ के सियासी दिग्गज पाला बदलने लगे हैं।

डेस्क। चुनावी साल और ऐसे में छत्तीसगढ़ की राजनीति में शह-मात का खेल जारी है। अब जोड़ तोड़ की राजनीति शुरू हो गई है। ऐसे में सियासी दिग्गज पाला बदलने लगे हैं। हो भी क्यों , जब पूरा जीवन ही राजनीति के दांवपेंच में बीता। लेकिन सियासी दुनिया में ऐसे भी नायक उभरे जो एक ही पार्टी में पूरा जीवन बीता दिए। भले ही उन्हें पार्टी की मुख्यधारा से अलग कर दिए गए हो। ऐसे भी नेताओं की फेहरिश्त राजनीति के क्षेत्र में लंबी है। जब कोई जीवटधारी और अपने समुदाय के लिए संघर्ष करने वाला राजनीतिज्ञ खुद की पार्टी में उपेक्षित महसूस करने लगता है। ऐसे में, वह अन्य पार्टी में जाने के लिए वैचारिक मंथन करता है।

कुछ ऐसी ही स्थिति आदिवासी नेता नंदकुमार सॉय (tribal leader Nandkumar Soy) की भी रही। उन्हें बीजेपी में लगा, उनकी उपेक्षा हो रही है और आदिवासी के हितों के मुद्दों से बीजेपी भटक गई है। हालिया चले, आरक्षण के मुद्दे से भी वह व्यथित थे। जब उन्होंने पार्टी छोड़ी तो अपना दर्द बयां किए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वाली पार्टी अब BJP नहीं रही। उन्होंने मुझे आगे बढ़ाया। इस वजह से उन्होंने बीजेपी छोड़ी और भूपेश (Bhupesh) और मरकाम की अगुवाई में कांग्रेस में शामिल हुए। नंदकुमार सॉय ने कहा, वह भूपेश बघेल के काम से प्रभावित होकर कांग्रेस ज्वॉइन किया है।

इसके बाद बीजेपी में राज्य ही नहीं केंद्र तक हड़कंप मचा। BJP के इस अविश्वसनीय सियासी घटनाक्रम का अंदाजा नहीं था। लगे इस बड़े झटके से बीजेपी नेता अभी भी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि नंदकुमार साय पार्टी छोड़ सकते है। बीजेपी के नेताओं ने ‘शुभकामना’ दी तो कुछ ने कहा, उनके लिए BJP के ‘दरवाजे’ हमेशा खुले हैं। इतना ही नहीं बीजेपी के कद्दावर नेता बृजमोहन और रमन सिंह ने तो यहां तक कह दिया, बीजेपी से सांसद-विधायक रहे। भाजपा के लिए 42 साल तपस्या की। कहा, नंदकुमार साय की बीजेपी मां हैं। बेटों में नाराजगी हो सकती है लेकिन मां से कोई नाराज नहीं हाेता। वे फिर मां के चरणों में आएंगे। बीजेपी के नेताओं के इस बयान के पीछे सबसे बड़ी वजह है कि नंदकुमार साय आदिवासी समाज के बड़े नेता हैं। इनके कांग्रेस में जाने पर बड़ा फर्क पड़ेगा ही। ये दीगर है कि बीजेपी कहे, इनके जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

कांग्रेस में जाने पर बीजेपी का तर्क

बीजेपी का तर्क है कि कांग्रेस यह जान रही थी कि आरक्षण बिल पर सुप्रीम कोर्ट में कुछ नहीं होने वाला है। विधानसभा में पास बिल पर निर्णय नहीं हो पाएगा। ऐसे में आदिवासी समाज में जाने के लिए कांग्रेस को एक बड़े चेहरे की जरूरत थी। क्योंकि आदिवासी समाज आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस नाराज है। यही कारण है कि कांग्रेस ने नंदकुमार साय पर झपट्टा मार लिया है। अब कांग्रेस इनके चेहरे को चुनाव में आदिवासी समाज में यूज करेगी। बहरहाल, इस तर्क में कितना दम है, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। हां, लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस के 76 प्रतिशत आरक्षण बिल पर जिस तरह से सियासी दौर चला उससे आदिवासी समाज भी बीजेपी से नाराज है। जिसका जीता जागता उदाहरण भानुप्रतापपुर का उपचुनाव था। जहां आदिवासी समाज के लोगों ने अपने प्रत्याशी खड़े किए थे। वहां कांग्रेस को जीत मिली लेकिन जीत का अंतर कम था।

बीजेपी ने ट्वीटर पर छेड़ा पोस्टर वार

अब बीजेपी यह बताने की कोशिश में जुटी है कि नंदकुमार साय को पार्टी में शामिल करने के बाद उनका कांग्रेस सिर्फ सियासी यूज करेगी। लिखा, आदिवासी भूपेश के लिए सत्ता की सीढ़ी हैं। यूज एंड थ्रो कांग्रेस की नीति है, ये तो मोहन मरकाम से ही पूछो, उन्हीं की आपबीती है…।