अनूठा उपचुनाव, एक विधानसभा सीट पर हर गांव एक-एक प्रत्याशी, पढि़ए आखिर क्यों मचा चुनावी दंगल
By : madhukar dubey, Last Updated : November 15, 2022 | 6:34 pm
इस वजह से कांग्रेस का दांव पड़ा उल्टा, इसलिए छिड़ा विरोध
बता दें, क्यों हो रहा है विरोध छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले के बाद आदिवासियों के आरक्षण में १२ फीसदी की कटौती हो गई है। बीजेपी-कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर एक-दूसरे पर हमलावर हैं। ऐसे में सर्व आदिवासी समाज के लोग आरक्षण में कटौती के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है। 2012 में भाजपा के शासन में आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। इसके भूपेश सरकार ने आदिवासियों के आरक्षण के प्रतिशत में कटौती, उसे ओबीसी में जोड़ दिया था। इसे लेकर मामला कोर्ट में गया था। जहां कोर्ट ने सरकार के आरक्षण के रोस्टर को रद्द कर पूर्ववत 2012 के आरक्षण को बहाल रखने के लिए फैसला सुनाया है। लेकिन कांग्रेस के लिए यह निर्णय असहज कर दिया क्योंकि ओबीसी वर्ग को अब कैसे नाराज करे। इधर, आदिवासी समाज को भी संतुष्ट करना है। ऐसे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विशेष सत्र की सिफारिश की है, ताकि नए विधेयक बनाया जा सके।
कोर्ट का तर्क है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं जा सकता है
कोर्ट का तर्क था कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं जा सकता है। कुछ राज्यों में जहां 50 प्रतिशत से ज्यादा का आरक्षण है, वहां विधेयक लाया गया था। तभी वहां लागू है। इसके अध्ययन के लिए सरकार ने राज्यों में दल भेजा है। उसकी रिपोर्ट के बाद मसौदा तैयार होगा। लेकिन इसके बावजूद आदिवासी समाज मानने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि हमें अब किसी पर विश्वास नहीं है।
क्यों हो रहे हैं उपचुनाव
विधानसभा के डिप्टी स्पीकर मनोज मंडावी के निधन के बाद खाली हुई भानुप्रतापुरा विधानसभा सीट के लिए नामांकन की अंतिम तिथि १७ नवंबर को है। ५ दिसंबर को वोटिंग होगी जबकि ८ दिसंबर को मतगणना की जाएगी।
मंत्री कवासी लखमा ने क्या कहा
हालांकि बस्तर के प्रभारी मंत्री और प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा का कहना है कि आने वाले दिनों में होने वाले विधानसभा सत्र में आरक्षण को लेकर बात जरूर रखी जाएगी और किसी भी स्थिति में आदिवासी समाज सरकार से नाराज ना हो इसकी पूरी कोशिश की जाएगी लेकिन फिलहाल अभी समाज के लोगों से कोई बातचीत नहीं हुई है. वहीं बीजेपी के लोगों ने भी सर्व आदिवासी समाज के नाराज लोगों से कोई बातचीत नहीं की है. अगर भानुप्रतापपुर विधानसभा के हर एक गांव से सर्व आदिवासी समाज अपने प्रत्याशियों को खड़ा करता है, तो ऐसे में इस उप चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।