छत्तीसगढ़। कांकेर जिले की भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव की सरगर्मी अब बढ़ गई है। लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर सर्व आदिवासी समाज ने प्रदेश सरकार को घेरने के लिए एक अनूठा विरोध करने का निर्णय लिया है। उनका तर्क है कि वोट बहिष्कार के बजाए वे अपने लोगों को एकजूट रखने के लिए विधानसभा के इस चुनाव में हर गांव से एक-एक प्रत्याशी मैदान में उतारेंगे। ताकि उनके वोट का फायदा कांग्रेस और बीजेपी को न मिले। जबकि बीजेपी ने आदिवासियों की मांग को जायज ठहराते हुए अपना समर्थन दिया है। इसके बावजूद सर्व आदिवासी समाज ने राजनीतिक दलों की आंखें खोलने के लिए किसी को वोट देने के बजाए उन्होंने हर गांव से अपने समाज के लोगों को चुनाव में खड़ा करने का निर्णय लिया है। यहां बता दें कि भानुप्रतापपुर विधानसभा क्षोत्र में 80 ग्राम पंचायतें हैं। इसमें कुल 461 गांव हैं। आज नामांकन पत्र खरीदने की प्रक्रिया शुरू हुई तो वहां कलेक्टर परिसर में सभी चौंक गए। जहां आदिवासी समाज लोगों ने कुल 55 नामांकन पत्र खरीदे। इधर, सर्व आदिवासी समाज के इस निर्णय से प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। क्योंकि एेसे में अगर नामांकन वापस नहीं लिया गया तो चुनाव कराने के लिए बैलेट बॉक्स की आवश्यकता पड़ जाएगी। क्योंकि इतनी बड़ी में मात्रा में ईवीएम का इस्तेमाल ना मुमकिन है। बहरहाल कैसे चुनाव कराएंगे। ये तो आने वाले वक्त बताएगा।
बता दें, क्यों हो रहा है विरोध छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले के बाद आदिवासियों के आरक्षण में १२ फीसदी की कटौती हो गई है। बीजेपी-कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर एक-दूसरे पर हमलावर हैं। ऐसे में सर्व आदिवासी समाज के लोग आरक्षण में कटौती के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है। 2012 में भाजपा के शासन में आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। इसके भूपेश सरकार ने आदिवासियों के आरक्षण के प्रतिशत में कटौती, उसे ओबीसी में जोड़ दिया था। इसे लेकर मामला कोर्ट में गया था। जहां कोर्ट ने सरकार के आरक्षण के रोस्टर को रद्द कर पूर्ववत 2012 के आरक्षण को बहाल रखने के लिए फैसला सुनाया है। लेकिन कांग्रेस के लिए यह निर्णय असहज कर दिया क्योंकि ओबीसी वर्ग को अब कैसे नाराज करे। इधर, आदिवासी समाज को भी संतुष्ट करना है। ऐसे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विशेष सत्र की सिफारिश की है, ताकि नए विधेयक बनाया जा सके।
कोर्ट का तर्क था कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं जा सकता है। कुछ राज्यों में जहां 50 प्रतिशत से ज्यादा का आरक्षण है, वहां विधेयक लाया गया था। तभी वहां लागू है। इसके अध्ययन के लिए सरकार ने राज्यों में दल भेजा है। उसकी रिपोर्ट के बाद मसौदा तैयार होगा। लेकिन इसके बावजूद आदिवासी समाज मानने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि हमें अब किसी पर विश्वास नहीं है।
विधानसभा के डिप्टी स्पीकर मनोज मंडावी के निधन के बाद खाली हुई भानुप्रतापुरा विधानसभा सीट के लिए नामांकन की अंतिम तिथि १७ नवंबर को है। ५ दिसंबर को वोटिंग होगी जबकि ८ दिसंबर को मतगणना की जाएगी।
हालांकि बस्तर के प्रभारी मंत्री और प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा का कहना है कि आने वाले दिनों में होने वाले विधानसभा सत्र में आरक्षण को लेकर बात जरूर रखी जाएगी और किसी भी स्थिति में आदिवासी समाज सरकार से नाराज ना हो इसकी पूरी कोशिश की जाएगी लेकिन फिलहाल अभी समाज के लोगों से कोई बातचीत नहीं हुई है. वहीं बीजेपी के लोगों ने भी सर्व आदिवासी समाज के नाराज लोगों से कोई बातचीत नहीं की है. अगर भानुप्रतापपुर विधानसभा के हर एक गांव से सर्व आदिवासी समाज अपने प्रत्याशियों को खड़ा करता है, तो ऐसे में इस उप चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।