रायपुर। राजिम कुंभ कल्प मेला (Rajim Kumbh Kalp Mela) का आयोजन ’रामोत्सव’ की थीम पर मनाया जा रहा है। आयोजन को लेकर राजिम सहित आसपास के क्षेत्रों में लाइट से डेकोरेट किया गया है। वहीं राजिम मेला क्षेत्र के पैरी नदी किनारे सीताबाड़ी (Sitabari on the banks of river Parry) में लोगों की भीड़ बढ़ रही है। सीताबाड़ी का ऐतिहासिक महत्व है। यहां पुरातत्व विभाग द्वारा पिछले वर्षों में खुदाई की गई थी। खुदाई के दौरान मौर्यकाल तक के अवशेष मिले थे। अवशेष के आधार पर पुरातत्ववेता के अनुसार इस जगह पर किसी समय में बंदरगाह होने की पुष्टि मिलती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बंदरगाह से व्यापार किया जाता रहा है।
ज्ञात हो कि प्राचीन काल नगरीय सभ्यता का विकास नदी के किनारे ही हुआ है और सभ्यताएं यही से निखरी हैं। पहले लोग घुमंतू होते थे और जीवन की तलाश में हमेशा ऐसी जगह को प्राथमिकता देते थे जहां पानी, भोजन की पर्याप्त व्यवस्था हो। इस लिहाज से माना जा सकता है कि महानदी तट पर विकसित सभ्यता के साथ व्यापारिक आदान-प्रदान के लिये उपयोगी जलमार्ग के कारण यहां बंदरगाह के अवशेष पाये जाना तर्क संगत हो सकता है।
आज राजिम प्रदेश के विकसित नगरों में से एक है यहां की प्राचीन धरोहरों के अवशेष राजिम की महानदी घाटी की सभ्यता का सशक्त द्योतक है। जिसकी प्रमाणिकता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा हुआ है। राजिम के साहित्यकार और भागवताचार्य संत कृष्णारंजन तिवारी ने अपनी किताब महानदी घाटी की सभ्यता में राजिम के विभिन्न बिन्दुओें का तार्किक ढंग से व्याख्या की है जिसमें उन्होंने सिंधु घाटी की सभ्यता की तरह महानदी घाटी की सभ्यता को भी काफी विकसित और समृद्धशाली बताया है। हालांकि इसकी पूर्ण रूप से पुष्टि नहीं किया जा सकता। चूंकि शासन द्वारा राजिम माघी पुन्नी मेला को कुंभ कल्प का स्वरूप दिया गया है। इससे राजिम की कला, संस्कृति और सभ्यता की ख्याति भी देश-दुनिया तक फैली है। जिसका मुख्य कारण राजिम में आयोजित होने वाला कुंभ कल्प ही है। यह श्रेय भी राजिम कुंभ कल्प को जाता है।
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