नया नक्सली सुप्रीमो देवजी: 6 करोड़ का इनामी, 135 जवानों का हत्यारा और गुरिल्ला युद्ध में माहिर
By : dineshakula, Last Updated : September 11, 2025 | 12:55 pm
दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ | 11 सितंबर 2025: छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ (Abhujmad) के घने जंगलों में मई महीने में सुरक्षा बलों ने सीपीआई (माओवादी) के शीर्ष नेता नंबाला केशव उर्फ बसवराजू को ढेर कर दिया था। डेढ़ करोड़ के इनामी इस नक्सली की मौत को संगठन के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका माना गया। लेकिन अब नक्सलियों ने नए सुप्रीमो के रूप में एक और कुख्यात चेहरा सामने लाया है — देवजी, जो अब तक सेंट्रल मिलिट्री कमांड का मुखिया था, अब महासचिव बना दिया गया है।
देवजी, जिसे संजीव उर्फ पल्लव के नाम से भी जाना जाता है, करीमनगर (तेलंगाना) के कोरुटला इलाके के एक दलित परिवार से ताल्लुक रखता है। उसकी उम्र करीब 62 साल है और पिछले लगभग 35 वर्षों से वह नक्सल मूवमेंट से जुड़ा हुआ है। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, देवजी 6 करोड़ रुपये के इनामी नक्सली के तौर पर भारत के मोस्ट वांटेड माओवादियों में शामिल है।
जंगलों में गुरिल्ला स्टाइल से हमला करने में माहिर देवजी के नाम सबसे भयानक नक्सली हमलों का नेतृत्व करने का आरोप है। इनमें 2007 की रानी बोदली घटना शामिल है, जिसमें 55 जवान शहीद हुए थे, और 2010 का दंतेवाड़ा हमला, जिसमें 80 सीआरपीएफ जवानों की जान गई। यही कारण है कि उसे “मिलिट्री माइंड” और “क्रूर रणनीतिकार” के रूप में जाना जाता है।
छत्तीसगढ़ पुलिस को यह जानकारी हाल ही में आत्मसमर्पण करने वाले एक नक्सली कमांडर से पूछताछ के दौरान मिली। उस कमांडर ने खुलासा किया कि देवजी को महासचिव और माडवी हिडमा को दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सचिव नियुक्त किया गया है। हालांकि नक्सल संगठन ने इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है, जिससे संकेत मिलता है कि माओवादी फिलहाल अपनी कमजोर स्थिति को छुपाना चाहते हैं।
माडवी हिडमा, जो पहले से ही एक जाना-पहचाना और खतरनाक नाम है, अब और अधिक शक्तिशाली भूमिका में आ गया है। वह छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के पुवर्ती गांव का मूल निवासी है। हिडमा की पहचान बेहद हिंसक रणनीति और घातक हमलों के लिए होती है। अब उसे वह जिम्मेदारी दी गई है, जो सीधे तौर पर सुरक्षा बलों के खिलाफ ऑपरेशन को लीड करती है।
दोनों नाम — देवजी और हिडमा — आने वाले समय में सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकते हैं। इनकी नियुक्ति न केवल माओवादी संगठन के पुनर्गठन की ओर इशारा करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भले ही उन्हें जमीन पर लगातार शिकस्त मिल रही हो, लेकिन वे रणनीतिक तौर पर खुद को फिर से खड़ा करने की कोशिश में हैं।



