क्या कुमारी देवी ने नेपाल में अनिष्ट का संकेत दे दिया था? सोशल मीडिया पर बढ़ी चर्चा

By : ira saxena, Last Updated : September 11, 2025 | 12:51 pm

काठमांडू, नेपाल | 11 सितंबर, 2025: नेपाल (Nepal) इन दिनों राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक प्रदर्शनों की चपेट में है। संसद, सुप्रीम कोर्ट और कई प्रमुख सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर दिया गया है। देश जल रहा है, और राजधानी काठमांडू सन्नाटे और भय के साये में है। इस बीच, एक और अजीब-सी बहस सोशल मीडिया पर तेज हो गई है — क्या नेपाल की जीवित देवी, कुमारी देवी, ने इस अनिष्ट का संकेत पहले ही दे दिया था?

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में लोग इंद्र जात्रा उत्सव के दौरान कुमारी देवी के भावों को लेकर चर्चा कर रहे हैं। इन वीडियो में देवी कुछ मायूस और गंभीर नजर आ रही हैं, जिसे लोग अब ‘दिव्य संकेत’ मान रहे हैं। कई नेपाली यूजर्स का कहना है कि देवी की आंखों में दर्द और चिंता की जो झलक दिखाई दी थी, वो आने वाले संकट का इशारा था। यह पहली बार नहीं है जब कुमारी देवी के भावों को लेकर ऐसा दावा किया गया है।

साल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप के दौरान भी कुछ लोगों ने कहा था कि देवी का क्रोध ही तबाही की वजह बना। दिलचस्प बात यह रही कि उस समय जब पूरा शहर बर्बाद हो रहा था, तब कुमारी देवी के आवास को कोई नुकसान नहीं हुआ। नेपाली समाज में यह गहरी मान्यता है कि कुमारी देवी दैवीय शक्तियों से युक्त होती हैं और आपदा से पहले कोई न कोई संकेत जरूर देती हैं।

कुमारी देवी की परंपरा नेपाल में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। जिस तरह तिब्बत में दलाई लामा को चुना जाता है, उसी तरह नेपाल में विशेष परीक्षाओं और मान्यताओं के आधार पर एक छोटी लड़की को देवी घोषित किया जाता है। यह देवी तब तक अपने ‘पद’ पर बनी रहती है, जब तक उसके मासिक धर्म शुरू नहीं हो जाते। इसके बाद उसे सम्मानपूर्वक पद से मुक्त किया जाता है और उसे आजीवन पेंशन दी जाती है।

इंद्र जात्रा, जो नेपाल का एक प्रमुख त्योहार है, उसमें कुमारी देवी को उनके घर से बाहर निकाला जाता है और रथ पर सवार करके पूरे शहर में घुमाया जाता है। हजारों लोग उनके दर्शन को उमड़ पड़ते हैं। लेकिन इस बार देवी की भाव-भंगिमा ने कुछ लोगों को असहज कर दिया। अब यही लोग मौजूदा संकट को देवी के पूर्वाभास से जोड़ रहे हैं।

हालांकि, वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण रखने वाले वर्ग इसे अंधविश्वास करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि प्राकृतिक या राजनीतिक घटनाओं को धार्मिक संकेतों से जोड़ना न केवल गुमराह करता है, बल्कि सामाजिक सोच को भी पीछे ले जाता है। फिर भी, नेपाल जैसे deeply spiritual देश में जहां परंपरा और आस्था जनजीवन का हिस्सा हैं, ऐसे विश्वासों को पूरी तरह खारिज करना भी आसान नहीं है।

देश एक बार फिर कठिन दौर से गुजर रहा है। इस समय जनता को दिशा, नेतृत्व और समाधान की जरूरत है — न कि डर और भ्रम की।