रायपुर। विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव और अब नगरीय निकाय चुनाव में भी कांग्रेस को करारी हार का सामना (Congress faces a crushing defeat)करना पड़ा है। इस हार ने न केवल कांग्रेस की राज्य में साख पर असर डाला है बल्कि पार्टी के भीतर भी असंतोष की स्थिति पैदा कर दी है।
पार्टी के नेता ही इस हार के लिए वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इस बीच प्रदेश में सियासत भी शुरू हो गई है। दुर्ग के पाटन क्षेत्र में भूपेश बघेल यानी कांग्रेस की हार के बाद भी पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाकर बड़ी जिम्मेदारी दी है।
भूपेश बघेल लंबे समय तक छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सबसे बड़े नेता रहे हैं। वह खुद अपने क्षेत्र में भी जनता का विश्वास नहीं जीत सके। नगरीय निकाय चुनाव में उनके गृह क्षेत्र पाटन में कांग्रेस को करारी हार झेलनी पड़ी। पाटन वही इलाका है, जो कभी भूपेश बघेल का मजबूत किला माना जाता था।
मगर, इस बार यहां कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। यही नहीं, पूरे राज्य में 10 निकायों के चुनाव हुए और सभी जगह कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इससे पहले हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को बुरी तरह शिकस्त मिली थी और भाजपा(BJP) ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी।
इस पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने तंज कसते हुए कहा कि जिसे कांग्रेस ने महासचिव बनाया, उसे उनके अपने घर की जनता ने ही हराकर धन्यवाद दिया है। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद प्रदेश की राजनीति में नई हलचल मच गई है।
इतना ही नहीं, उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने भी कहा कि भूपेश को जहां-जहां का प्रभारी बनाया गया, वहां कांग्रेस के क्या हालात हैं, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने भूपेश और कांग्रेस के गिरते जनाधार पर चुटकी ली।
वहीं, अरुण साव के बयान पर कांग्रेस ने पलटवार किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि अरुण साव को भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाने का सपना दिखाकर उपयोग किया। मगर, सत्ता मिलते ही भाजपा ने साव को उपमुख्यमंत्री बनाकर धोखा दिया। साव को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर टिप्पणी करने से पहले खुद का आंकलन करना चाहिए। भूपेश बघेल का राजनीतिक कद दिन प्रति दिन बढ़ रहा है। कांग्रेस में उन्हें कई जिम्मेदारियां दी हैं। अभी राष्ट्रीय महासचिव पंजाब प्रभारी बनाया गया हैं। साव को राष्ट्रीय स्तर पर क्या जिम्मेदारी मिली हैं।
नगरीय निकाय चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री अमरजीत भगत ने मीडिया से चर्चा में कहा कि जनता का जनादेश तो स्वीकार करना ही पड़ेगा। मगर, हार के कई कारण है, जिसमें कांग्रेस के नेताओं में आपसी सामंजस्य की कमी शामिल है।
उन्होंने उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत, पीसीसी चीफ दीपक बैज और पूर्व मंत्रियों का जिक्र भी किया है। अमरजीत भगत का कहना था कि प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी है, तो अकेले उसे सूली पर चढ़ा दिया जाए ये सही नहीं है। हार की जिम्मेदारी सभी नेताओं की है।
भूपेश बघेल के कार्यकाल के दौरान सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे। कथित कोयला घोटाले से लेकर शराब घोटाले तक कई मामलों में सरकार की भूमिका पर सवाल उठे। इन मामलों को लेकर भाजपा ने चुनाव प्रचार में कांग्रेस को जमकर घेरा और इसका असर जनता के फैसले में भी दिखा। मतदाताओं ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया, जिससे साफ हो गया कि जनता भूपेश सरकार के कामकाज से खुश नहीं थी।
छत्तीसगढ़ में हार के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व ने भूपेश बघेल पर भरोसा जताते हुए उन्हें पंजाब का प्रभार सौंपा है। पंजाब में कांग्रेस की स्थिति भी काफी जटिल है। आम आदमी पार्टी की सरकार वहां मजबूती से जमी हुई है। वहीं, कांग्रेस अंदरूनी कलह से जूझ रही है। ऐसे में भूपेश बघेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस को फिर से मजबूत करना और 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को तैयार करना होगी।
भूपेश बघेल को नई जिम्मेदारी दिए जाने के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस में बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है। हालांकि, सवाल यह भी उठ रहा है कि जो नेता अपने राज्य में पार्टी को हार से नहीं बचा सका, क्या वह दूसरे राज्य में कांग्रेस को जीत दिला पाएगा? पंजाब की राजनीति छत्तीसगढ़ से काफी अलग है। वहां की जमीनी हकीकत को समझने में बघेल को समय लग सकता है। ऐसे में भूपेश वहां क्या जादू करेंगे, यह तो समय ही बताएगा।
यह भी पढ़ें : बारात और मंडप तैयार, भाजपा का दूल्हा नहीं पता है : गोपाल राय