हिड़मा सरेंडर करेगा? बस्तर में डिप्टी CM विजय शर्मा ने नक्सलियों की माता से की अपील
By : dineshakula, Last Updated : November 11, 2025 | 6:58 am
By : dineshakula, Last Updated : November 11, 2025 | 6:58 am
बस्तर, छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ के बस्तर में सबसे खतरनाक माने जाने वाले नक्सली हिड़मा (Naxal Hidma) और बारसे देवा को लेकर सियासी व सुरक्षा हलचल तेज है। डिप्टी सीएम विजय शर्मा हाल ही में हिड़मा और बारसे देवा के गांव पहुंचे और उनकी माताओं से मिले। उन्होंने महिलाओं से अपील की कि वे अपने बेटों को हथियार छोड़कर लौट आने को कहें। इसके बाद कई माताओं ने अपने नक्सली बेटों से हथियार डालने का आग्रह किया है।
माड़वी हिड़मा तथा बारसे देवा की माताओं को प्रणाम किया।
उन्होंने ने भी पुनर्वास हेतु अपील की।
साथ भोजन किए और माताओं ने बड़े ही स्नेह से सभी से बात की।साथ ही नक्सल संगठन में सक्रिय लोगों के परिजनों से भेंट कर पुनर्वास हेतु प्रेरित करने आग्रह किया।
पुवर्ती, जिला सुकमा,… pic.twitter.com/M4wGRxSOet
— Vijay sharma (@vijaysharmacg) November 11, 2025
सरकार के उच्च स्तरीय प्रयासों और हालही में हुए सरेंडरों के बाद बस्तर व गरियाबंद में बड़ी संख्या में नक्सली हथियार छोड़ रहे हैं। एक पूर्व नक्सली रूपेश ने भी हाल में बताया था कि कई नेता अलग-अलग कारणों से पीछे हट रहे हैं। बावजूद इसके नक्सलियों के दो गुट बने हुए हैं और उनका एक गुट—जिसमें हिड़मा और देवा माने जाते हैं—सरेंडर के लिए राजी नहीं बताया जा रहा।
हिड़मा को बस्तर का सबसे खतरनाक और सक्रिय नक्सली नेता माना जाता है। उस पर ताड़मेटला हमला, झीरम घाटी हमला, बुरकापाल हमला और अरनपुर IED ब्लास्ट जैसे कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड होने के आरोप हैं। उस पर कुल इनाम एक करोड़ रुपये से अधिक घोषित है और वह PLGA का शीर्ष नेतृत्व माना जाता है। बड़े नक्सल कमांडर या तो हथियार छोड़ रहे हैं या एनकाउंटर में ढेर हो रहे हैं; ऐसे में हिड़मा के सरेंडर को बस्तर में नक्सल गतिविधि के समाप्ति के लिए निर्णायक बताया जा रहा है—लेकिन फिलहाल यह केवल संभावना है और अधिकारिक तौर पर कुछ पक्का नहीं हुआ है।
सरकार का कहना है कि परिवारों, स्थानीय नेताओं और सुरक्षा एजेंसियों के समन्वय से नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति बहाल करने के प्रयास जारी हैं। डिप्टी सीएम की अपील के बाद स्थानीय स्तर पर नक्सलियों को मान-मनौव्वल कर लौटाने की कोशिशें तेज कर दी गई हैं, पर दूसरी तरफ गुटीय संघर्ष और कुछ सक्रिय नेताओं की अनिच्छा उन योजनाओं के समक्ष चुनौतियाँ पैदा कर रही है।