बंगाल में ‘द केरला स्टोरी’ पर प्रतिबंध को लेकर राज्य में नागरिक समाज बंटा
By : hashtagu, Last Updated : May 10, 2023 | 2:06 pm
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (एपीडीआर) के महासचिव रंजीत सूर के मुताबिक, जब फिल्म के प्रदर्शन पर रोक का फैसला लिया गया था, तब तक राज्य के अलग-अलग मल्टीप्लेक्स में चार दिनों तक फिल्म की स्क्रीनिंग की जा चुकी थी।
सूर ने कहा, “लेकिन फिल्म (The Kerala Story) की स्क्रीनिंग को लेकर कानून और व्यवस्था की समस्या की एक भी रिपोर्ट नहीं आई है। राज्य सरकार को फिल्म की स्क्रीनिंग की अनुमति देनी चाहिए थी और राज्य के लोगों को यह तय करने देना चाहिए था कि वे इसे स्वीकार करते हैं या अस्वीकार करते हैं। मुझे नहीं लगता कि फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाकर राज्य सरकार ने सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने के प्रयासों के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। यह वोट बैंक के ध्रुवीकरण को ध्यान में रखते हुए एक शुद्ध राजनीतिक खेल है।”
कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि सिनेमा हॉल या मल्टीप्लेक्स में फिल्मों के प्रदर्शन पर इस तरह की रोक इंटरनेट और ओटीटी के मौजूदा युग में बेकार है।
गुप्ता ने कहा, “पहले से ही फिल्म के ऑनलाइन लीक होने की खबरें आ रही हैं। बहुत जल्द फिल्म एक या एक से अधिक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाई देगी। राज्य सरकार लोगों को वहां देखने से कैसे रोकेगी? बल्कि यह प्रतिबंध अब उन लोगों को भी प्रोत्साहित करेगा, जो फिल्म देखने नहीं गए हों।”
जाने-माने चित्रकार सुभाप्रसन्ना, जिन्हें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बेहद करीबी के रूप में जाना जाता है, फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के तर्क से असहमत हैं। उनके अनुसार, वे हमेशा किसी भी रचनात्मक कार्य के खिलाफ जबरन विरोध के खिलाफ रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब सेंसर बोर्ड ने फिल्म के प्रदर्शन को हरी झंडी दे दी है तो उन्हें राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध पर कोई तर्क नजर नहीं आता। उन्होंने कहा, लोगों को फिल्म को स्वीकार या अस्वीकार करने की आजादी होनी चाहिए।
हालांकि, कवि और शिक्षाविद सुबोध सरकार को लगता है कि राज्य सरकार ने फिल्म के पर्दे पर प्रतिबंध लगाकर सही काम किया है, क्योंकि इसमें तनाव पैदा करने के लिए पर्याप्त तत्व हैं। उन्होंने कहा, मेरी राय में राज्य सरकार ने चिंगारी को आग में न बदलने देकर सही काम किया है।