Oscars: RRR या द कश्मीर फाइल्स? ऑस्कर की दौड़ के लिए कौन कितना फिट

By : dineshakula, Last Updated : August 24, 2022 | 3:39 pm

अनुराग कश्यप सिर्फ बॉलीवुड के एक बेहतरीन फिल्ममेकर ही नहीं हैं, बल्कि सिनेमा के बहुत पैने पारखी भी हैं. देश में ही नहीं, सिनेमा के इंटरनेशनल सीन पर भी उनकी नजर चौकस बनी रहती है. इसलिए जब वो सिनेमा पर अपनी राय रखते हैं तो उसमें भरपूर वजन होता है और देशभर में सिनेमा से जुड़े लोग उसे ध्यान से सुनते हैं.हफ्ता भर पहले अनुराग ने एक इंटरव्यू दिया. इंटरव्यू में उन्होंने भारतीय फिल्मों और उनकी इंटरनेशनल पहुंच को लेकर डिटेल में बात की. इसी बीच उन्होंने कहा कि RRR को अगर भारत ऑस्कर अवार्ड्स में अपनी ऑफिशियल इंडियन एंट्री बनाकर भेजता है, तो 99% चांस है कि इसे नॉमिनेशन मिलेगा. यानी इंडिया के पास आखिरकार ऑस्कर जीतने का एक चांस होगा.

इसी इंटरव्यू में अनुराग ने यह भी कह दिया कि उन्हें उम्मीद है भारत की ऑफिशियल एंट्री ‘द कश्मीर फाइल्स’ नहीं होगी. हालांकि, उन्होंने ये बात बड़े कैजुअल व्यंग्य में कही. मगर किसी बात का बवाल बनने में आखिर देर कहां लगती है!’द कश्मीर फाइल्स’ इस साल की सबसे कमाऊ बॉलीवुड फिल्म है. 300 करोड़ से ज्यादा का कलेक्शन कर डालने वाली इस फिल्म के साथ जनता का एक इमोशन जुड़ा है. कश्मीरी पंडितों के साथ घाटी में हुई हिंसा की कहानी दिखाने वाली ‘द कश्मीर फाइल्स’ को लोगों ने डबडबाई आंखों के साथ थिएटर्स में देखा. हालांकि विवेक अग्निहोत्री की फिल्म पर यह भी आरोप रहा है कि ये एक प्रोपेगैंडा फिल्म है और एक तयशुदा राजनीतिक पूर्वाग्रह के साथ बनाई गई है. इसलिए जब अनुराग कश्यप ने इसे ऑस्कर में न भेजे जाने की उम्मीद जताई तो फिल्म देखकर इमोशनल होने वाले बहुत लोग आहत भी हो गए.

कहानी की अपील 
डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री का ‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाने के पीछे क्या एजेंडा रहा है, उनकी क्या पॉलिटिक्स है, ये सब एकदम किनारे रखकर बात की जाए तो इसकी कहानी दर्शक को फिल्म में पूरी तरह इन्वेस्ट होने का मौका यकीनन देती है. और अगर फिल्म वाकई बहुत पाथ-ब्रेकिंग है, सिनेमा की तयशुदा हदों को तोड़ती है, तो ऐसी कई फिल्मों का ऑस्कर अवार्ड की रेस में होने और अवार्ड जीतने का इतिहास रहा है जिनपर अमेरिका का वॉर प्रोपेगैंडा प्रोमोट करने का आरोप लगा. जैसे- अमेरिकन स्नाइपर और जीरो डार्क थर्टी.

ऑस्कर अवार्ड्स की ज्यूरी में इस तरह की कहानियां पसंद की जाती हैं जिनकी जड़ में ज्यूरी में इस तरह की कहानियां पसंद की जाती हैं जिनकी जड़ में एक इमोशनल कनेक्ट हो. घाटी में रहे कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का दर्द, उनका घर-जमीन छोड़  आने का दुख, अपनी मिट्टी को वापिस पाने की तड़प, और एक जियो-पॉलिटिकल विवाद में बंट जाने का दुर्भाग्य फिल्म देखने वाले की आत्मा हिट करता है. यहां इस बात को छोड़ दीजिए कि ये भारत के बड़े राजनीतिक मुद्दों में से एक है क्योंकि राजनीति का हिसाब किताब बहुत क्षेत्र आधारित होता है और हिट करता है. यहां इस बात को छोड़ दीजिए कि ये भारत के बड़े राजनीतिक मुद्दों में से एक है क्योंकि राजनीति का हिसाब किताब बहुत क्षेत्र आधारित होता है और ऑस्कर की ज्यूरी दिल्ली में नहीं बैठती.

RRR और सेलेब्रेशन

जैसा कि अनुराग कश्यप ने भी अपने इंटरव्यू में कहा, एक फिल्म जिस इलाके की कहानी पर बनी है, उसके कल्चर को देखने की एक खिड़की भी खोलती है. इस हिसाब से RRR सिनेमा के पर्दे पर भारतीय कल्चर को देखने का एक बेहतरीन झरोखा है. अलग-अलग बोलियों, क्षेत्रों और संस्कृतियों में बंटे भारत को जो भी धागे एक माला में गांठकर रखते हैं, RRR उन सबका सेलेब्रेशन है. भारत का सिनेमा ही नहीं, बल्कि क्षेत्रीय कल्चर भी गाने और नाचने को एक बड़ा एक्सप्रेशन मानते हैं. और सिनेमा स्क्रीन पर इससे बड़ा एक्सप्रेशन क्या होगा कि ‘नाटू नाटू’ पर डांस करते हुए दो हिंदुस्तानी क्रांतिकारी,’वाइट-सुप्रीमेसी’ यानी फिल्म में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक अधिकारी के ‘मैं ही सभ्यता का शिखर हूं’ वाले एटीट्यूड को चूर चूर कर रहे हैं.