नाक के जरिए दी जाने वाली नई जीन थेरेपी: फेफड़ों और सांस की बीमारियों के इलाज में क्रांतिकारी कदम

यह नई तकनीक उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण हो सकती है जो दमा, क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, कोविड-19 और अन्य फेफड़ों की बीमारियों से पीड़ित हैं। स्प्रे के जरिए दवा देने की यह विधि सस्ती, आसान और दर्द रहित भी है, जो इसे आम जनमानस के लिए और भी उपयोगी बनाती है।

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  • Publish Date - May 23, 2025 / 01:15 PM IST

नई दिल्ली :  अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक नई और बेहद उन्नत जीन थेरेपी तकनीक विकसित की है, जिसे नाक में स्प्रे के रूप में दिया जा सकता है। यह तकनीक सीधे फेफड़ों और श्वसन तंत्र को लक्षित करती है और आने वाले समय में सांस से जुड़ी गंभीर बीमारियों के इलाज में एक बड़ी क्रांति ला सकती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि जीन थेरेपी तभी कारगर होती है जब इलाज से संबंधित अणु शरीर के सही हिस्से तक ठीक तरीके से पहुंच सकें। इसके लिए आमतौर पर एडेनो-एसोसिएटेड वायरस (AAV) का उपयोग किया जाता है, जो जीन को कोशिकाओं तक पहुंचाने का कार्य करता है।

इसी दिशा में मैसाचुसेट्स जनरल ब्रिघम (Mass General Brigham) के वैज्ञानिकों ने AAV का एक नया और उन्नत रूप तैयार किया है, जिसे उन्होंने AAV.CPP.16 नाम दिया है। यह वायरस वेरिएंट नाक से स्प्रे के रूप में शरीर में प्रवेश करता है और सीधे फेफड़ों और श्वसन तंत्र की कोशिकाओं तक पहुंच जाता है।

शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को पहले केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) तक दवा पहुंचाने के लिए तैयार किया था, लेकिन परीक्षण के दौरान पता चला कि यह फेफड़ों की कोशिकाओं में भी अत्यंत प्रभावी तरीके से कार्य करता है। इसीलिए इसे अब सांस की बीमारियों के लिए भी परखा जा रहा है।

ब्रिघम एंड विमेंस हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जरी विभाग में कार्यरत वैज्ञानिक फेंगफेंग बेई ने बताया, “हमने जब इस तकनीक का परीक्षण चूहों और अन्य जानवरों पर किया, तो देखा कि यह पुराने AAV6 और AAV9 वेरिएंट्स की तुलना में कई गुना बेहतर तरीके से फेफड़ों और श्वसन मार्ग को टारगेट करता है।”

इतना ही नहीं, वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का प्रयोग वायरल संक्रमण, विशेष रूप से कोविड-19 वायरस के खिलाफ भी किया। SARS-CoV-2 वायरस से संक्रमित चूहों पर यह थेरेपी वायरस के प्रसार को रोकने में सफल रही। इसका मतलब है कि यह तकनीक न सिर्फ भविष्य की बीमारियों के इलाज में, बल्कि वर्तमान महामारी जैसी स्थितियों में भी उपयोगी हो सकती है।

हालांकि वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि इंसानों पर इसका इस्तेमाल शुरू करने से पहले और भी शोध और परीक्षणों की आवश्यकता है। लेकिन अभी तक जो परिणाम सामने आए हैं, वे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि AAV.CPP.16 भविष्य में सांस की नली और फेफड़ों को सीधे इलाज पहुंचाने का एक सशक्त और कारगर जरिया बन सकता है।

यह नई तकनीक उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण हो सकती है जो दमा, क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, कोविड-19 और अन्य फेफड़ों की बीमारियों से पीड़ित हैं। स्प्रे के जरिए दवा देने की यह विधि सस्ती, आसान और दर्द रहित भी है, जो इसे आम जनमानस के लिए और भी उपयोगी बनाती है।

वास्तव में, यह खोज आने वाले वर्षों में फेफड़ों की बीमारियों के इलाज की तस्वीर बदल सकती है और जीन थेरेपी को हर व्यक्ति तक पहुंचाने का रास्ता खोल सकती है।