मन में उठते गलत विचार भी हैं बीमारी का कारण, मुकाबला करने के लिए बैलेंस बनाना जरूरी

आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य का एक गहरा संबंध होता है। यदि हमारे मन में नकारात्मक विचार या तनाव की स्थिति रहती है, तो यह हमारे शरीर पर भी असर डालता है।

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  • Publish Date - May 14, 2025 / 12:21 PM IST

आयुर्वेद (Ayurved) का सिद्धांत है “स्वस्थ्य रक्षणम, आतुरस्य विकार प्रशमन च”, जिसका मतलब है स्वस्थ व्यक्ति की हेल्थ की रक्षा करना और बीमार व्यक्ति का इलाज करना। आयुर्वेद में इसे स्वस्थ रहने के लिए नियमों का पालन करना और शरीर-मन का संतुलन बनाए रखना जरूरी माना गया है। आधुनिक समय में भी यह सिद्धांत सच साबित हो रहा है, जहां न केवल शारीरिक असंतुलन, बल्कि मानसिक और भावनात्मक असंतुलन भी बीमारियों का कारण बन रहा है।

आयुर्वेद के अनुसार बीमारी के मुख्य कारण

आयुर्वेद के अनुसार, किसी भी बीमारी के होने के तीन प्रमुख कारण होते हैं:

  1. बाह्य कारण (External Causes): जैसे मौसम, पर्यावरण, और बाहरी दुनिया से जुड़ी परिस्थितियाँ।

  2. निज कारण (Internal Causes): व्यक्ति के शरीर और मन के आंतरिक संतुलन में गड़बड़ी।

  3. मन और शरीर का संतुलन न होना: जब मन और शरीर के बीच संतुलन नहीं होता, तो विकार उत्पन्न होते हैं।

मन और शरीर के बीच संतुलन

आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य का एक गहरा संबंध होता है। यदि हमारे मन में नकारात्मक विचार या तनाव की स्थिति रहती है, तो यह हमारे शरीर पर भी असर डालता है। शरीर और मन का बाहरी दुनिया से निरंतर संपर्क रहता है, और जब यह संतुलन बिगड़ता है, तब रोग उत्पन्न होते हैं। इसीलिए आयुर्वेद के अनुसार, मानसिक स्थिति का शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

आयुर्वेद में त्रिदोष का सिद्धांत

आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) का संतुलन न होना बीमारियों का कारण बनता है। जब शरीर में इन तीनों द्रव्यों में असंतुलन होता है, तो विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। आयुर्वेद मानता है कि बीमारियों के दो मुख्य कारण होते हैं:

  • लाइफस्टाइल संबंधी (Lifestyle Diseases): जैसे गलत खानपान, तनाव, अव्यवस्थित दिनचर्या।

  • नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज (Non-Communicable Diseases): जैसे उच्च रक्तचाप, शुगर, आदि।

इन्द्रियों का दुरुपयोग

असत्मेंद्रियार्थ संयोग का मतलब है इन्द्रियों का दुरुपयोग और कुप्रबंधन। आयुर्वेद में यह कहा गया है कि हमारे शरीर के सेंसरी ऑर्गन (जैसे आंख, कान, जीभ, आदि) का सही तरीके से उपयोग करना चाहिए। जब गर्मी चरम पर हो, तो ठंडा कोला या सॉफ्ट ड्रिंक की बजाय ऐसी चीजों का सेवन करना चाहिए, जो शरीर के लिए सही हों।

मानसिक संतुलन और स्वास्थ्य

आयुर्वेद में प्रज्ञाप्रद यानी बुद्धि का दुरुपयोग भी बीमारी का कारण है। जब हमारे मन में नकारात्मक या गलत विचार आते हैं, तो यह शरीर के अंदर विकार उत्पन्न करता है। इससे शारीरिक असंतुलन होता है और कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं।

मौसम और स्वास्थ्य

आयुर्वेद में समय (काल) और मौसम के बीच संतुलन बनाए रखने की बात भी कही जाती है। जैसे गर्मी, सर्दी और बारिश के मौसम में अगर शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है, तो यह बीमारियों का कारण बन सकता है।

नतीजा

इससे यह स्पष्ट है कि हमें अपने शरीर, मन और बाहरी वातावरण के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए। यदि हम मानसिक रूप से संतुलित रहेंगे और अपने खानपान और दिनचर्या का ध्यान रखेंगे, तो शरीर में विकार उत्पन्न नहीं होंगे और हम स्वस्थ रहेंगे। यह आयुर्वेद का सिद्धांत ‘स्वास्थ्य स्वास्थ्य रक्षणम’ को सही साबित करता है।

इसलिए, मानसिक संतुलन और सही आहार-व्यवहार से हम बीमारियों से बच सकते हैं और स्वस्थ रह सकते हैं।